दल दल को थल समझ रहा
गहरे में ना धँस जाना,
जब 'रुद्र' तुम्हें पुकारें तो
तुम ढूड़े से ना मिलो वहाँ।
ए मन मौजी.............॥
'रुद्र' ने तुम्हें आगाह किया
ए लव्य तू मन को सँभाल जरा,
क्यों इसको इतना बिगाड़ लिया
ना इस पर तुमने विचार किया।
एै मन मौजी..........................॥
आगरा से कु. लव्यता द्वारा प्रेषित भजन
3 comments:
सुंदर रचना. आभार.
Lavyata ji is kriti ke liye apko sadhuwaad
bahut sundar likti hain. aage bhi likhti rahiyega.
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