मनुष्य को पूर्ण सुखी जीवन पाने के लिए प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाना आवश्यक है। परन्तु उसके मन के विकारों खासकर लोभ ने उसे अन्धा बना दिया तथा वह प्रकृति से खिलवाड़ करने लगा। आवश्यकता से अधिक खनन, प्रदूषण, प्राकृतिक स्रोतों के अनुचित दोहन के कारण ही आज ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़, भूकम्प, सुनामी, सूखा, अकाल, महामारी जैसी प्राड्डतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। हमें इनसे उबरने के लिए सिर्फ अपने भीतर की प्रकृति को सुधारना है, बाह्य प्रकृति स्वयं सुधर जाएगी।
Friday, December 5, 2008
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1 comment:
achchhi vivechna ki hai aapne...
Saadhuwaad
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