कवि विकल जी की लेखनी से रचित भारत भूमि को अभिनंदित एक कविता
हे ऋषियों की तपोभूमि तेरा शत् शत् वन्दन,
तेरे कण-कण को है मेरा बारम्बार नमन्।
गंगा यमुना सरस्वती मिलि, कल कल नाद करें,
धर्म अर्थ औ काम मोक्ष-श्रुति में संवाद भरें।
सत्यम् शिवम् सुन्दर करते तुझसे परिरम्भ्ण.....
हे ऋषियों की तपोभूमि....॥१॥
देवभूमि! हैं तुझे समर्पित ऋद्धि सिद्धि औ निद्धि,
करती निर्मल सदा ज्ञान से, सकल विश्व की बुद्धि।
मनसा वाचा और कर्मणा शिव संकल्पित मन.....
हे ऋषियों की तपोभूमि....॥२॥
परम पवित्र स्वर्ग सीढ़ी, पीढ़ी-पीढ़ी पावन,
तेरी रज ऋषियों-मुनियों के माथे का चन्दन।
करते प्रकृति विराट् अहर्निशि तेरा अभिनंदन.....
हे ऋषियों की तपोभूमि....॥३॥
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