आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Wednesday, December 17, 2008

प्रभु की लीला अपरम्पार


प्रभु की लीला अपरम्पार,जिसका है नहीं कोई बखान।

उंच नीच का भेद नहीं कुछ,वो प्राणी मात्र में है एक समान।

कण कण में वो बसा हुआ,तिनके तिनके में है, उसकी जान।

दुनिया का जीवन दाता है,उसकी दया मेहर का है प्रमान।

उसकी मर्जी के बिना,चल नहीं सकता ये जहान।

उसे हर दिल हर पल की खबर,उसकी सत्ता है महान।

वो अपने अंतर में मिलता है,ग्रन्थ शास्त्रों में है पहिचान।

चौरासी के चक्कर से छूट जाएगा,गर सन्त वचन को लेगा मान॥

प्रस्तुति : राज कुमार बघेल

1 comment:

ashish said...

bahut achi kavita hain