प्रस्तुति :-आयुष्मान
शैव तन्त्र की तीन शाखायें हैं भेदवादी, भेदाभेदवादी और अभेदवादी। इनमें से प्रथम का प्रचलन शैव सिद्धान्त के नाम से तमिलनाडु में है। दूसरी शाखा वीर शैव के नाम से कर्णाटक में क्षीण दशा में है। तीसरी शाखा का प्रचलन काश्मीर में हुआ। यद्यपि कुछ लोग इसका मूल मध्य प्रदेश में मानते हैं। अभेदवादी शैव दर्शन को त्रिक दर्शन या प्रत्यभिज्ञा दर्शन के नामों से भी जाना जाता है।
आज तक की प्राप्त सूचनाओं के आधार पर लगभग २०० प्राचीन तन्त्र ग्रन्थों का नाम मिलता है। इनमें से भी बहुत से उपलब्ध नहीं हैं। वाराही तन्त्र के अनुसार यहां के तान्त्रिक ग्रन्थों में ९५७९५० श्लोक मिलते हैं। प्राचीन काल में भारत वसुन्धरा पर तन्त्रसाहित्य का विशाल भण्डार विद्यमान था। भेदप्रधान शैवागमों की संख्या १०, भेदाभेदप्रधान शैवागमों की १८ और अभेदवादी शैवागमों की संख्या ६४ है। इन ६४ आगमों का वर्गीकरण अष्टकों में हुआ है। आठ अष्टकों वाले इस भैरवागम के अष्टकों के नाम निम्नलिखित हैं१. भैरवाष्टक २. यामलाष्टक ३. मत्ताष्टक ४. मङ्गलाष्टक ५. चक्राष्टक ६. बहुरूपाष्टक ७. वागीशाष्टक ८. शिखाष्टक।
1 comment:
Aapke prayas ki jitni sarahana ki jaye kam hai
Post a Comment