अक्सर हम देखते हैं कि लोग इस जीवन को दुःख रूप मानते हैं, तथा कहते हैं कि हमें यह जीवन मिला ही कष्ट भोगने के लिए है। सच है कि दुःख जीवन का तथ्य है पर यह अधूरा तथ्य है। सच यह भी है कि सुख भी जीवन का तथ्य है। इसे माने बिना सम्पूर्ण तथ्य तक नहीं पहुँचा जा सकता है। इस जीवन में सुख है इसीलिए दुःख भी है। संसार से मिलने पर वस्तुओं तथा व्यक्तियों से संयोग भी है फिर वियोग भी है। हमारा मन कुछ व्यक्तियों, वस्तुओं, परिस्थितियों को चाहता है तथा कुछ को नहीं। जिन्हें मन पसंद करता है उनके संयोग में सुख लगता है तथा जिन्हें मन पसंद नहीं करता है, उनके वियोग में सुख लगता है। इसके उलट जिन्हें मन पसंद करता है उनके वियोग से और जिन्हें पसंद नहीं करता, उनके संयोग से दुःख उपजता है। हमारी कमजोरी यह है कि हम विवेक, बु(ि से मन को मारना नहीं जानते। यदि इसकी पसंद मानकर मन मोटा न करें तो यह बस में रहे और फिर समता का भाव बना रहे। पर हम अनुकूल परिस्थिति को तो पकड़कर रखना चाहते हैं, परन्तु प्रतिकूल परिस्थिति से तुरन्त छुटकारा चाहते हैं। समता का दामन छोड़ने से ही ऐसा होता है। यदि हम सुख आने पर बाँटें तथा दुःख को प्रारब्ध का फल मानकर सहन करते चलें तो परेशानी न हो।
Monday, December 1, 2008
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1 comment:
Dhanyawaad,....subah subah is lekh ko padh kar laga jaise Geeta saar sun rahe ho.............Samatvam Yog Uchyate...Samata hi yog hai...
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