जहाँ सुख है वहीं दुःख है। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संसार में कुछ भी शाश्वत नहीं है। सभी कुछ अनित्य, विनाशी तथा परिवर्तनशील है अतः जिस व्यक्ति या वस्तु का संयोग आज सुख दे रहा है, कल वही वियोग होने पर दुःख का कारण भी होगा। वास्तव में इन पदार्थों में सुख दुःख देने की सामर्थ्य नहीं है परन्तु हम ही इनसे सम्बन्ध मानकर इनमें अनुकूलता, प्रतिकूलता की भावना कर लेते हैऋ जिससे ये पदार्थ सुख दुःख देने वाले बन जाते हैं। यही नहीं मन इंद्रियाँ भी निरंतर परिवर्तनशील होते हैं। जो आज मन-इन्द्रियों को अच्छा लग रहा है कल नहीं लगता। सुख देने वाली वस्तु का सुख लेने के बाद धीरे धीरे इन्द्रियाँ थक जाती हैं और नींद की आवश्यकता पड़ जाती है। लगातार किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ से निरंतर सुख नहीं लिया जा सकता। जफसे यदि कोई अपने मित्र को प्रेम से गले लगा ले तो सुख लगता है परन्तु यदि फिर छोड़े ही ना तो वही दुःख रूप हो जाएगा। सुख दुःख एक दूसरे से इतने गहरे जुड़े हैं कि यह पता नहीं चलता कि कब सुख दुःख बन गया और कब दुःख सुख बन गया।
Tuesday, December 2, 2008
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