जगत् गुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविंदापादाचार्य से तंत्र के ज्ञान हेतु याचना की। गुरुदेव ने कहा कि तंत्र ज्ञान नित्य लीला विहारिणी दीक्षा है। इसके लिए गुरु आदेश का प्रतिपल अक्षरशः पालन करना पड़ता है, क्योंकि यह क्रिया देह को साधने और मन को बांधने के लिए अत्यंत आवश्यक है। गुरु आदेश प्राप्त कर शंकारार्च ने नर्मदा पुलिन पर एक गुफा में प्रवेश किया तथा साधना प्रारम्भ की। यह प्रकृति निर्मित गुफा आज भी जीवित, जाग्रत और चेतन्य है जहाँ जाने पर पवित्रता का बोध होता है। यहाँ जाने पर चेतना स्वतः जागृत होती है। इसी स्थान पर शंकराचार्य को ज्ञान हुआ कि 'ब्रह्म का ही स्थूल रूप माया है''। ब्रह्म से ही माया का प्रादुर्भाव होता है और माया पुनः ब्रह्म में लीन हो जाती है। गोविन्द पादाचार्य ने एक वर्ष तक शंकर की घोर परीक्षा ली। जब गुरु को विश्वास हो गया कि शंकर तंत्र ज्ञान हेतु अर्ह हैं तो उन्हें त्रिपुर सुन्दरी और श्री चक्र उपासना की साधना प्रदान की। यहीं से शंकराचार्य ने शिव के निर्गुण परम तत्व की प्राप्ति का ज्ञान प्राप्त किया, और शु( तंत्र विद्या का ज्ञान प्राप्त करते हुए श्री चक्र की उपासना का अनुभव किया।
Tuesday, December 9, 2008
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