आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, January 30, 2009

एक साधारण व्यक्ति कैसे जाने?

शक्तियों से लबरेज व्यक्ति तो ऐसे व्यक्तियों को पहचान सकता है, लेकिन एक साधारण व्यक्ति कैसे जाने? हमारे अनुभव के आधार पर कुछ प्रमुख लक्षण निम्न हैं-

' स्थिर भाव से एकटक किसी भी चीज को घूरना या घूरते रहना।

' बात करतेकरते बारबार ऊपर देखना और ऊपर देखकर बात करना।

' आँखों की पुतलियों (रैटिना) का स्थिर रहना।

' व्यक्ति या वस्तु को कुछ अजीब तरीके से घूरना।

' अचानक गंदगी पसंद या इसका उल्टा अर्थात अत्यधिक सुगंध पसंद करना।

' अधिक मात्रा में शराब, सिगरेट, मांसाहार आदि चीजों का शौकीन हो जाना।

' आधी रात के बाद शरीर में कुछ अजीबसा लगना,

अपने आप में कुछ परिवर्तन पाना,

गुप्त अंगों पर भारीपन या जलन का लगना।

Thursday, January 29, 2009

काया नश्वर है किंतु मंत्र अजरअमर है।

मंत्र हीलिंग अर्थात आध्यात्मिक चिकित्सा की शरण में आने वाला परेशानी अथवा रोगमुक्त अवश्य ही हो जाता है। मंत्रों की आराधना के लिए सात्विकता, शुद्धता, पवित्रता को अति जरूरी विधा माना गया है। इसमें स्थान एवं मुनि की शुद्धि का ध्यान अवश्य रखना होता है। मंत्र हीलिंग भी शुद्ध अध्यात्म है। काया नश्वर है किंतु मंत्र अजरअमर है। मंत्रों का प्रभाव दिलदिमाग, वायुआत्मा तक होता है। जब मंत्रों का उच्चारण करते हैं, उनकी ध्वनि को कानों से सुनते हैं तो शरीर का रोमरोम असीम शक्ति और शांति का अनुभव करता है। क्यों? क्योंकि मंत्रों में ब्रह्मांड की शक्ति निहित है। मंत्र हीलिंग की आध्यात्मिक चिकित्सा हमेशा याद रखें अपनी आस्था का केंद्र न बदलें। अपने विश्वास को कायम रखें। अपना इष्ट जरूर जानें, अपनी पूजा प्रार्थना को सही रूप, सही आकार दें। इसी में मदद मिलेगी आपको डाउजिंग एस्ट्रोलॉजी से। मंत्र हीलिंग से आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं माइग्रेन, तनाव, अनिद्रा, दमा, ब्लड प्लेटिलेटस, डिप्रेशन, ऊपरी हवा, पुराने दर्द एवं अन्य पारिवारिक परेशानियों में।

Wednesday, January 28, 2009

क्या ईश्वर के पास किसी चीज की कमी है?

अनंत जीवन का भी अंत होता है। शरीर के क्षेत्र में रोग एक समस्या है, लेकिन जहाँ शक्ति की भक्ति हो वहाँ रोग हो या परेशानी सभी को झुकना होता है। मंत्र के द्वारा यह सम्भव है।
क्या ईश्वर के पास किसी चीज की कमी है? नहीं निवेदन या याचना कितना प्रबल है, मिलने की संभावना उस पर निर्भर करती है। विश्वास, आस्था, श्रद्धा ही इसकी मुख्य खुराक है। यदि आप में है तो फिर परेशानी हो या रोग सभी आपसे दूर भागेंगे।

Tuesday, January 27, 2009

मेरा गुनाह ?

पिछले काफी समय से में कंप्यूटर शिक्ष्हा को ग्रामीण बच्चों को सिखाना चाहता था। गत वर्ष मेरे एक मित्र मेरे पास आए और उन्होंने मुझे बताया की बरेली में आइकावा नामक एक एन गी ओ है जो मुफ्त में कंप्यूटर सिखाते हैं। मैंने उस संस्था की फ्रेंचाइज लेली और इगलास में एक केन्द्र खोल दिया।
बच्चों से केवल १ रुपया फीस ली जाती और पढाने वाले टीचर का तनखा ऐकावा देती। बढिया काम चल रहा था। इसी दौरान मेरे पास एक सज्जन आए और मुझसे बोले की उनके लिए भी ऐसी ही एक संस्था खुल वा देन। उनके सरल आग्रह को सुनकर मैंने सोचा की चलो इनका भी सहयोग किया जाय ।
ऐसा विछार कर मैंने इस योजना के बारे में उनको बताया की किस प्रकार यह संस्था पहले ५०००० रूपये जमानत के रूप में जमा कराती है और उसके उपरांत बच्चे दाखिला लेकर पढ़ते हैं और अध्यापकों एवं कर्मचारियों का वेतन आइकावा से मिलता है। उन्होंने आइकावा के नाम एक ड़ी ड़ी बनवाकर मुझे दे दिया और फार्म भर दिया।
मैंने मानवता के नाते उनका फार्म और ड़ी ड़ी बरेली आइकावा के ऑफिस में जमा करा ड़ी और रसीद लाकर उन्हें देदी। कुछ समय बाद वह संस्थ्हा बंद हो गयी । मुझ सहित लगभग ७००० लोगों के जमानत रासी डूब गयी। इसके लिए हमने पुलिस में रपट कई।
मेरी त्रासदी यह है की जिस व्यक्ति का फार्म मेने जमा कराया वह अब मुझसे आकर तकादा करता है। कभी गोली मरने की बात करता है तो कभी कुछ और। मैं ख़ुद अपने पैसे के लिए परेशान । मैं उससे कहूं की वह भी चल कर रपट कर दे तो भी नही। क्या मानवता के नाते उसके फार्म को जमा कराने के लिए बरेली तक चला जाना गुनाह है। क्या पूछने पर किसी को अपनी राय बता देना गुनाह है।
आप लोग ही बताइये कैसे इस प्रकार मानवता बचेगी। क्या इंसान इंसान के काम न आवे। और अगर आवे तो डाक पहुंचाने के बदले गोली और गालियाँ खावे।

Monday, January 26, 2009

मांगो तो हैसियत देखकर भाग 2

गतांक se आगे.........

समय बीतता गया बात पुरानी हो गई। एक बार राज्य में भयंकर सूखा पड़ा। चरवाहे के पास चारे का अभाव हो गया। उसके पशु बिना चारे के सूखते जा रहे थे। चरवाहे की पत्नी ने उससे कहा कि अब राजा के पास जाकर उसे मदद मांगनी चाहिए। पत्नी की बात को सही मानकर चरवाह मुद्रा को लेकर राजा के पास चल दिया। राजधानी में आकर उसने महल के द्वारपाल को राजा की दी हुई मुद्रा दिखाई और राजा से मिलवाने को कहा। मुद्रा देखकर द्वारपाल ने उसे राजा के समक्ष पहुंचा दिया। राजा को चरवाहे द्वारा उसकी जान बचाने की घटना याद आ गई और उस गरीब चरवाहे को उसने आदर के साथ महल में ठहराया और अपने सिंहासन पर बिठा दिया। राजा बोला मित्र बताओ तुम्हें क्या चाहिए। चरवाहा बोला महाराज मेरे क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ा है। पानी के अभाव में हरियाली नष्ट हो गई है। मेरे पशु भूख से मर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में मुझे एक बुग्गी चारा दिलवाने की कृपा करें। राजा ने फौरन चारे की व्यवस्था करा दी और अपने माथे को पीटने लगा। अरे मैंने तो इसे राजसिंहासन पर बिठाया। यह राज भी ले लेता तो मैं इसे दे देता लेकिन इसको तो मांगना भी नहीं आया। हमारी स्थिति भी उस चरवाहे की सी है। देने वाला न जाने क्या क्या देने को बैठा है और हमको मांगना भी नहीं आता। चरवाहे ने राजा से मांगा तो क्या? घास फूंस। वह राजा के पास गया, राजा देने को उद्यत था। उससे राजा की हैसियत और उसके द्वारा दिए स्थान के अनुरूप याचना की जा सकती थी।

हम गुरु के पास जाते हैं। उस गुरु के पास जिसे हमारे कल्याण के लिए प्रभु ने भेजा है। केवल और केवल हमारे कल्याण के लिए और हम उससे मांगते क्या हैं? कंकर पत्थर जिन्हें हम स्वयं परिश्रम से अर्जित कर सकते हैं या किसी बीमारी का इलाज जिसे ठीक करने को संसार में करोड़ों चिकित्सक उपलब्ध हैं। हमको भी उस चरवाहे की तरह मांगना नहीं आता। अरे गुरु जब कहें कि मांग लो तो उनकी हैसियत के हिसाब से मांगो। जो क्षमता उसके अंदर है उस क्षमता को मांगो। जो दिव्यता उसके अंदर है वैसी ही दिव्यता की याचना करो। अगर वह सक्षम है तो देगा। नहीं तो तुम भले और हम। जब दोनों एक जैसे तो कौन किस से मांगे और कौन किसको दे। एक भिखारी दूसरे भिखारी को क्या देगा।

Sunday, January 25, 2009

मांगो तो हैसियत देखकर भाग 1

बहुत समय पहले की बात है, एक पराक्रमी राजा शिकार करने गया। घनघोर जंगल में राजा के काफिले पर हिंसक जानवरों ने हमला बोल दिया। अत्यंत वीरता से लड़ने के बावजूद राजा के सभी अंगरक्षक मारे गए और राजा बुरी तरह घायल होकर मूर्छित हो गया।

कुछ समय के बाद एक चरवाह वहां होकर गुजरा। उसने घायल पड़े राजा और उसके अंगरक्षकों के शवों को देखा। उसने विचार किया कि यदि घायल को घर ले जाकर उसे ठीक किया जा सकता है। उसने घायल राजा को उठाया और अपनी झोपड़ी में ले आया। उसने राजा के घावों पर हल्दी इत्यादि का लेप लगाकर मरहम पट्टी की। कुछ समय में राजा को होश आ गया। उसने चरवाहे से पूछा कि क्या वह जानता है कि वह किसका इलाज कर रहा है। चरवाहे ने कहा, 'नहीं, मैं तो मानवता के नाते एक घायल की सेवा कर रहा हूं।

राजा ने स्वस्थ होकर उसे बताया कि वह उस देश का राजा है और उसे इनाम देना चाहता है। चरवाहे ने कहा कि वह तो अपनी अवस्था में प्रसन्न है, उसे कुछ इनाम की अभिलाषा नहीं है। कुछ समय में राजा के चाकर उसे ढूड़ते हुए वहां पहुंच गए और राजा राजधानी को चल दिया। चलते हुए राजा ने चरवाहे और उसकी पत्नी का आभार व्यक्त किया और अपनी मुद्रा देते हुए बोला कि उसे जब जो आवश्यकता हो उससे आकर ले सकता है। इस मुद्रा को दिखाने पर उसे नगर में कोई भी उसके पास पहुंचा देगा। शेष अगले अंक में यानी कल ............

Saturday, January 24, 2009

रुद्र तो केवल अनुभव करने की चीज है।

भाई बचन सिंह जी बात तो आपकी ठीक सी है पर यह बात स्पष्ट नहीं हो रही कि शांति का मंत्र से क्या सम्बन्ध है। -आशीष चौधरी अरे यार तू हमेशा मुझे फंसावे के चक्कर में रहै। बोले मीठा बात करई करै। पर आज मैं तुझे समझा के ही चैन लूंगा। संजय मामा ते कह दीजो मेरी बात को तोड़े मडोड़े नहीं। -बचन सिंह तेवतिया शांति की जरूरत यूं है - कभी रात को नदी के किनारे जाके बैठ के देखो। केवल ओउम्‌ के अलावा कोई दूसरी आवाज सुनाई नहीं देगी। दिन में जब चिल्ल पों है रही होइ तो जानै कहा कहा सुनाई देगौ। मतलब समझौ या बात कौ? नदी जब बहै तो वो भी ओम नाम को सुमिरन करै। जा दिन ये ओम मंत्र को सुमिरन बंद कर देगी वा दिन सरस्वती की तरह से विलुप्त है जावेगी। और फिर वाकौ क्या बन्यौ ये बात तोकूं मालूम है। नहीं मालूम तो मैं बता देता देता हूं। नाला बन गई। लोग बतावें वाकौ नाम अब गोवर्धन नाला बन गया है। बहुत दिन मंत्र बोल्यौ ज्या वजह से से है तो गोपाल भूमि में पर नाले के रूप में। समझे कि नहीं। अरे यार अब भी नहीं समझे। चलो अब दूसरे तरीके से समझावें। ऐसे समझौ, जैसे तुम टेलीफोन प्रयोग कारौ या मोबाइल प्रयोग करौ। मोबाइल खरीद लाए। सिम भी खरीद लाए। नेटवर्क भी चल रहा है। परन्तु तुम वाते बात नहीं कर रहे हौ। अगर कोई फोन पर घंटी आवै तुम कोई उत्तर नहीं दो। या उत्तर देने की बजाए अन्ट शन्ट बकना शुरु कर दो। क्या इस फोन का कोई मतलब है। जब सब कुछ सही चलेगा तभी तो इस मोबाइल का उपयोग है। ठीक इसी तरह मंत्र का सही प्रयोग करना सीखो। बड़े किस्मत वाले हो कि तुम्हें रुद्र को अनुभव करने का मौका मिला है। अगर मंत्र जैसी छोटी चीज को नहीं समझे तो रुद्र को तो कैसे भी नहीं समझ सकते। मंत्र तो फिर भी सुनाई देता है, लेकिन रुद्र तो केवल अनुभव करने की चीज है। संजय मामा के सहारे कब तक चलोगे.................. -बचन सिंह तेवतिया

SAPTAH KA VICHAR

AAJ KAL KI YUVA PEEDHI KE PRATI-

yah jeevan anmol hai ...ek ek pal mahatvapoorna hai kyonki in palon se mil kar hi yah jeevan bana hai ....
sada apne lakshya parmatma ka dhyan rahe ....
Bahut gayee thodi rahi ....
thodi bhi ab jaye

kahin aisa na ho ki baad me haath malte rah jaayen aur punh jeevan maran ke chakra me phansna pade   

Wednesday, January 21, 2009

मंत्र को समझना है तो शांति जरूरी है।

मंत्र को समझना है तो शांति जरूरी है। मंत्र तो भाई मंत्र ही है। इसके बिना तो कुछ भी सम्भव ही नहीं। अरे जब केवद नाद था उस नाद को हस्तांतरित किया रिषियों ने अपने चेलों कोऋ तो किसके माध्यम से? अरे नहीं समझे बात मेरी। वह जो हस्तांतरण का माध्यम है वही तो मंत्र है। ओम कहां से चल्या और कैसे हम तक पहुंच्या? कभी गौर किया है। अरे भाई ओम तो सबसे प्राचीन मंत्र है। और आज भी उसी फार्म में है। इसे महामंत्र भी कह देवें। अरे ये महामंत्र ही है। यही गूंजे जब शान्त हो जावें। अब समझ लो बात। अगर मंत्र को समझना है तो शांति जरूरी है। अगर शान्ति नहीं है तो मंत्र क्या खाक काम करेगा। नहीं समझे? अगर शांत नहीं होगे तौ समझोगे भी नहीं।

प्रस्तुति : -बचन सिंह तेवतिया

Tuesday, January 20, 2009

हुजुर ने बिस्मिल्लाह पढ़कर ताले को हाथ लगाया, दरवाजा खुल गया।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने शबे मेराज में चार (४) नहरें देखीं, एक पानी की, दूसरी दूध की, तीसरी शराब की और चौथी शहद की। आपने जिब्रीले अमीन से पूछा ये नहरें कहाँ से आ रही हैं। हजरत जिब्रील ने अर्ज किया, मुझे इसकी ख़बर नहीं। एक दूसरे फ़रिश्ते ने आकर अर्ज की कि इन चारों का चश्मा मैं दिखाता हूँ। एक जगह ले गया, वहाँ एक दरख्त था, जिसके नीचे इमारत (मकान) बनी थी और दरवाजे पर ताला लगा था और उसके नीचे से चारों नहरें निकल रही थीं। फ़रमाया दरवाजा खोलो अर्ज की इसकी कुंजी मेरे पास नहीं है, बल्कि आपके पास है। हुजुर ने बिस्मिल्लाह पढ़कर ताले को हाथ लगाया, दरवाजा खुल गया। अंदर जाकर देखा कि इमारत में चार खंभे हैं और हर खंभे पर बिस्मिल्लाह लिखा हुआ है और बिस्मिल्लाह की मीम से पानी, अल्लाह की ह से दूध, रहमान की मीम से शराब और रहीम की मीम से शहद जारी है। अंदर से आवाज आई ऐ मेरे महबूब! आपकी उम्मत में से जो शख्स बिस्मिल्लाह पढ़ेगा, वह इन चारों का मुस्तहिक़ होगा। (तफ़सीरे नईमी जि. १, स. ४३)

Monday, January 19, 2009

जो शख्स बिस्मिल्लाह पढ़ता हो तो अल्लाह तआला उसके लिए दस (१०) हजार नेकियाँ लिखता है

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स बिस्मिल्लाह पढ़ता हो तो अल्लाह तआला उसके लिए दस (१०) हजार नेकियाँ लिखता है और शैतान इस तरह पिघलता है, जैसे आग में रांगा। हर जीशान (अहम) काम जो बिस्मिल्लाह से शुरू न किया जाए, वह नातमाम (अधूरा) रहेगा और जिसने बिस्मिल्लाह को एक बार पढ़ा, उसके गुनाहों में से एक जर्रा भर गुनाह बाक़ी नहीं रहता और फ़रमाया जब तुम वुजू करो तो बिस्मिल्लाह वलहमदुलिल्लाह कह लिया करो, क्योंकि जब तक तुम्हारा वुजू बाक़ी रहेगा, उस वक्त तक तुम्हारे फ़रिश्ते (यानी किरामन कातिबीन) तुम्हारे लिए बराबर नेकियाँ लिखते रहते हैं। हजरत इब्ने अब्बास से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फ़रमाया की कोई आदमी जब अपनी बीवी के पास आए तो कहे बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ऐ अल्लाह हमको शैतान से महफूज रख और जो तू मुझे अता फ़रमाए उससे भी शैतान को दूर रख और कोई औलाद हो तो शैतान उसे भी नुकसान नहीं पहुँचा सकेगा (बुख़ारी शरीफ जिल्दे अव्वल सफ़ा २६)।

Saturday, January 17, 2009

मंत्र की सच्चाई आखिर है क्या जिससे सत्य जीवन व्यतीत किया जाये।

कालांतर में इसरायिलयों ने इस मंत्र को न केवल उच्चारण तथा जाप किया अपितु अपने माथे पर एक डिबिया में रखकर बांधना, तथा बाजुओं पर ताबीज+ चौड़ी करके बांधना आरंभ किया। परंतु एक विशेष बात "मन में रखना'' पूर्णतः दरकिनार कर दिया फलतः मूलतंत्र जानकर, जपकर, उच्चारण करके भी गलतियाँ, बुराईयाँ तथा पाप-दर-पाप करते गये तथा यह सब आडम्बर हो गया और सत्य जीवन के मार्ग से भटक गये। तब प्रश्न उठता है कि मंत्र की सच्चाई आखिर है क्या जिससे सत्य जीवन व्यतीत किया जाये। प्रभु यीशु मसीह ने उपरोक्त मंत्रों को नया आयान तथा वास्तविकता प्रदान की। उन्होंने कहाः "तू अपने प्रभु, अपने परमेश्वर को सम्पूर्ण मन, सम्पूर्ण प्राण, सम्पूर्ण बुद्धि एवं सम्पूर्ण शक्ति से प्रेम कर तथा अपने समान अपने पड़ोसी को प्रेम कर। यही जीवन जीने का 'मूल मंत्र' नई आज्ञा है। ईश्वरीय मंत्र हमारे जीवन का सम्पूर्ण आधार है। इनके माध्यम से न केवल ईश्वरीय रहस्यों का पता चलता है वरन्‌ सत्य जीवन जीने की कला भी आती है परंतु यह स्वयं से नहीं हो सकता जब तक परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त न हो। अनुग्रह प्राप्त करने हेतु हमें परमेश्वर पर निर्भर होना पड़ेगा। निर्भरता से तात्यपर्य है अपने आपको सम्पूर्ण रीति से परमेश्वर को सौंप देना। सौंपना अर्थात्‌ मन, प्राण, बुद्धि, शक्ति से परमेश्वर को प्रेम तथा अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम है।

Friday, January 16, 2009

उहापोह में वह ईश्वरीय मंत्रों का उच्चारण एवं जाप करता है।

वर्तमान युग में प्रत्येक मनुष्य अपने चहुँमुखी विकास हेतु कुछ न कुछ चाहता है जिसके माध्यम से वह न केवल इस संसार में बंिल्क परलोक में भी सुख, समृद्धि तथा दुःख रहित जीवन व्यतीत करें, इस उहापोह में वह ईश्वरीय मंत्रों का उच्चारण एवं जाप करता है। यद्यपि वह भरपूर यत्न करता है कि इनके द्वारा सत्य जीवन जीने की कला सीख लें तथा उसका मार्ग सुधर जाये परंतु ऐसा है नहीं क्योंकि इसमें उसका स्वयं का प्रयास ही होता है। पवित्र बाइबल के पुराने विधान में परमेश्वर ने प्रत्येक यहूदी को एक व्यवस्था मूसा के द्वारा सौंपी जिससे वह सत्य जीवन जियें यह जीवन जीने का मूलतंत्र था। जिसे "शीमा'' कहते हैः "हे इस्त्राइल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है, तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन और अपने सारे जीव, और अपनी सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना। और ये आज्ञाऐं मूलमंत्र जो मैं आज तुझको सुनाता हूँ, वे तेरे मन में बनी रहेऋ और तू उन्हें अपने बाल बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते इनकी चर्चा किया करना, और इन्हें अपने हाथ पर चिन्हानी करके बांधना, और यह तेरी आँखों के बीच टीके का काम दे। और इन्हें अपने-अपने घर की चौखट की बाजुओं और फाटक पर लिखना''

Thursday, January 15, 2009

मंत्र की वास्तविक सफलता गुरु कृपा में ही निहित है।

गतांक se आगे-------

मंत्र सिद्धि के उपरांत उसका प्रयोग साधक पर निर्भर हो जाता है। वह चाहे उसका सदुपयोग करे चाहे दुरपयोग। मंत्र तो उसको विस्तारित करेगा। इसीलिए भी शायद हमारे मनीषियों ने सावधान किया कि मंत्र की वास्तविक सफलता गुरु कृपा में ही निहित है। कुछ लोग मंत्र को किसी देवता का गुणानुवाद भी मानते हैं। इस आधार पर अगर हम देखें तो पाएंगे कि दुनिया में ऐसा कोई मजहब नहीं जो किसी न किसी का गुणानवाद न करता हो। तो क्या हर मजहब, हर पंथ मंत्र की सामर्थ्य को स्वीकार कर चल रहा है। हमारे एक सुधी इंटरनेट पाठक ने इस पर बड़ा व्यावहारिक उदाहरण देकर हमें समझाने का प्रयास किया। उसे भी यहां लिख देना समीचीन ही होगा। उन्होंने कहा कि हमारा शरीर ब्रह्‌माण्ड है। इसकी संरचना यंत्र है। इसके संचालित होने की क्रिया विधि की जानकारी होना तंत्र है। और उसका क्रियाशील होना मंत्र है। बात शुरू में तो समझ में नहीं आई लेकिन सोचने पर अनुभव हुआ कि वह शायद ठीक ही तो कह रहा है। हम भली प्रकार जान लें कि यह शरीर है। हम इसके सभी फंक्शन्स के भी जानकार हो जाएं। इस प्रकार हम ज्ञानी डाक्टर हो सकते हैं। लेकिन अगर हम उसका संचालन नहीं जानते तो तो उस यंत्र और तंत्र की जानकारी किस काम की। विषय काफी विशाल है। इसलिए हम विभिन्न धर्माचार्यों एवं विद्वानों के विचारों को इस अंक में प्रकाशन के साथ सुधी पाठकों से भी उनके विचारों की अपेक्षा के साथ कर रहे हैं।

Wednesday, January 14, 2009

तंत्र की उपयोगिता मंत्र एवं यंत्र पर निर्भर है।

पिछले अंक में तंत्र पर चर्चा के दौरान ही यह अनुभव होने लगा था कि तंत्र का ज्ञान बिना मंत्र के पूर्ण नहीं है। तंत्र की उपयोगिता मंत्र एवं यंत्र पर निर्भर है। मंत्र शब्द मन्‌ एवं त्र का युग्म है। मन्‌ अर्थात विचार एवं विश्वास तथा त्र अर्थात विस्तार। इस प्रकार शाब्दिक दृष्टि से मंत्र का अर्थ हुआ किसी विचार या विश्वास को विस्तार देना।

हम जानते हैं कि विचार की कोई सीमा नहीं होती। विचार तो अनंत तक हो सकता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मंत्र अनंत तक विस्तारण योग्य विचार या विश्वास है। कुछ विचारकों ने मंत्र को मन का औजार भी कह कर परिभाषित किया है।

सामान्य प्रचलन में हर नेता तथा शिक्षक अपने अनुयायियों को कुछ मंत्र देने की बात कहता है। इस प्रकार इसे हम किसी क्रिया को पूर्ण करने का सरल एवं सटीक तरीका भी कह सकते हैं। कई लोग इसे किसी गुरु द्वारा कान में फूंके गए किसी वाक्य या श्लोक के रूप में मानते हैं। प्रश्न है कि आखिर मंत्र क्या है? क्या है इसकी शक्ति जो इसे हर सफल व्यक्ति अपने अनुचरों को इसे देना चाहता है।

अति प्राचीन काल से हमारे मनीषी स्रुतियों तथा धार्मिक गं्रथों में लिखी गई पद्यमय पंक्तियों को जिन्हें रिचा कहते थे को ही मंत्र के रूप में परिभाषित करते रहे हैं। ये रिचाएं मंत्र के रूप में यूं ही स्वीकार नहीं की गई हैं। वास्तव में प्राचीन ग्रंथों की प्रत्येक रिचा स्वयं में किसी विचार या विश्वास का विस्तार है। सनातन परम्परा के अनुसार 'मंत्र मूलम्‌ गुरु कृपा' का अर्थ है कि गुरु की कृपा ही मंत्र का मूल है। इसका अर्थ हुआ कि वह प्रकाश पुंज जो हमें घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, उसके अनुग्रह के परिणाम स्वरूप हमें मिलने वाला उसका हर वाक्य मंत्र है। और मंत्र वह शक्ति से जिससे हर मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। ----- शेष कल -----

तंत्र की उपयोगिता मंत्र एवं यंत्र पर निर्भर है।

पिछले अंक में तंत्र पर चर्चा के दौरान ही यह अनुभव होने लगा था कि तंत्र का ज्ञान बिना मंत्र के पूर्ण नहीं है। तंत्र की उपयोगिता मंत्र एवं यंत्र पर निर्भर है। मंत्र शब्द मन्‌ एवं त्र का युग्म है। मन्‌ अर्थात विचार एवं विश्वास तथा त्र अर्थात विस्तार। इस प्रकार शाब्दिक दृष्टि से मंत्र का अर्थ हुआ किसी विचार या विश्वास को विस्तार देना।

हम जानते हैं कि विचार की कोई सीमा नहीं होती। विचार तो अनंत तक हो सकता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मंत्र अनंत तक विस्तारण योग्य विचार या विश्वास है। कुछ विचारकों ने मंत्र को मन का औजार भी कह कर परिभाषित किया है।

सामान्य प्रचलन में हर नेता तथा शिक्षक अपने अनुयायियों को कुछ मंत्र देने की बात कहता है। इस प्रकार इसे हम किसी क्रिया को पूर्ण करने का सरल एवं सटीक तरीका भी कह सकते हैं। कई लोग इसे किसी गुरु द्वारा कान में फूंके गए किसी वाक्य या श्लोक के रूप में मानते हैं। प्रश्न है कि आखिर मंत्र क्या है? क्या है इसकी शक्ति जो इसे हर सफल व्यक्ति अपने अनुचरों को इसे देना चाहता है।

अति प्राचीन काल से हमारे मनीषी स्रुतियों तथा धार्मिक गं्रथों में लिखी गई पद्यमय पंक्तियों को जिन्हें रिचा कहते थे को ही मंत्र के रूप में परिभाषित करते रहे हैं। ये रिचाएं मंत्र के रूप में यूं ही स्वीकार नहीं की गई हैं। वास्तव में प्राचीन ग्रंथों की प्रत्येक रिचा स्वयं में किसी विचार या विश्वास का विस्तार है। सनातन परम्परा के अनुसार 'मंत्र मूलम्‌ गुरु कृपा' का अर्थ है कि गुरु की कृपा ही मंत्र का मूल है। इसका अर्थ हुआ कि वह प्रकाश पुंज जो हमें घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, उसके अनुग्रह के परिणाम स्वरूप हमें मिलने वाला उसका हर वाक्य मंत्र है। और मंत्र वह शक्ति से जिससे हर मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। ----- शेष कल -----

Tuesday, January 13, 2009

भगवानको छोड़कर अपने-सहित सारे संसारको अपना वैरी समझो


जैसे जलको छोड़कर अपनेसहित सारा संसार मछलीके लिये वैरीके समान है,

उसी प्रकार भगवानको छोड़कर अपने-सहित सारे संसारको अपना वैरी समझो;

क्योंकि वह तुम्हारे लिये फँसावटका ही कारण होगा।

ज्यों जग बैरी मीन को आपु सहित बिनु बारि।

त्यों तुलसी रघुबीर बिनु गति आपनी बिचारि॥

यह वक्तव्य एक साथी ने मुझे मेल किया । लगा की इसको सभी अन्य साथियों के साथ शेयर किया जाय। अगर उचित प्रतीत हो तो टिप्पणी अवश्य लिखें। रुद्रसंदेश

Monday, January 12, 2009

स्वामीजी रूक ना सके, कुसंस्कार की दौङ


परमात्मा के परम स्नेही उम्मीद सिंह बेधरक साधक जी की बारी सुंदर टिप्पणी प्राप्त हुई । उसे मूल रूप में प्रकाशित कर रहे हैं।

स्वामीजी रूक ना सके, कुसंस्कार की दौङ .

टी.वी। क्या माहौल ही, करे परस्पर हौङ ।

नाकरे परस्पर हौङ, कि संस्कति नष्ट हो कैसे।

भारत-भाग्य-सितारा, जल्दी अस्त हो कैसे।

कह साधक अब करो गुजारिश उसे स्वामीजी।

केवल ईश्वर पलट सके, दुष्चक्र स्वामीजी.

Sunday, January 11, 2009

हम किधर जा रहे हैं?

बच्चों का मन कोमल होता है उस पर पड़ी छाप आजीवन नहीं मिटती। आज बच्चा टी.वी., इंटरनेट आदि के माध्यम से बहुत कुछ जान चुका है, तो बेहतरी इसी में है कि उसे इतना ज्ञान अवच्च्य दिया जाए कि वह इस खुले माहौल में रहते हुए पाप व बदी के रास्ते से बच सके। गर्भपात सिर्फ कुछ अति विच्चेष परिस्थितियों में उचित है, अन्यथा भ्रूण हत्या की ही रोकथाम को जानी चाहिए। कन्याभ्रूण परीक्षण पर और कड़ाई से लगाम लगाने के साथ-साथ उन चिकित्सकीय सुविधाओं पर भी पाबन्दी लगाई जानी चाहिए, जिससे माता-पिता पहले से ही सुनिच्च्िचत कर सकते हैं कि बच्चा किस लिंग का हो इनमें अण्डे तथा वीर्य का निेपवद, चाइना डिच्च में बाहरी रूप नियन्त्रित परिस्थितियों में करवा कर सुनिच्च्िचत किया जाता है कि नर भ्रूण ही तैयार हो फिर इसे माँ के गर्भ में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। भ्रूण हत्या से, कन्या भू्रण हत्या और अब एक नई समस्या कि बच्चे का लिंग पूर्व में ही सुनिच्च्िचत करने की सुविधाऐं। हम किधर जा रहे हैं?

Saturday, January 10, 2009

धर्माचार्यों की भूमिका के अतिरिक्त विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा से सुधार सम्भव है।

धर्माचार्यों की भूमिका के अतिरिक्त विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा में भी यदि हम बच्चों को मूल्य परक शिक्षा दें-मानव जीवन का मूल्य बताऐं तथा दूसरों के जीवन का सम्मान करना सिखाऐं, तो बहुत सुधार सम्भव है। विद्यालयों में ही छात्रों को गर्भपात से होने वाले महिलाओं के स्वास्थ्य व कन्याओं की घटती संख्या से उत्पन्न सामाजिक असन्तुलन की भयावह स्थिति को भी बताया जाना चाहिए। और यदि इन छात्र-छात्राओं को गर्भपात के लिए इस्तेमाल होने वाले तरीकों की जानकारी दे दी जाए जो कि इतनी अमानवीय है कि उसका वर्णन रौंगटे खड़े कर दें तो वे शायद इस घृणित अपराध को कभी भी ना करने का संकल्प ले लें।

Friday, January 9, 2009

अस्तिव को गर्भ में ही समाप्त करना बाइबिल के अनुसार घृणित कृत्य है।

ईसाई मत भी इस बात को सिद्ध करता है। दूसरी सदी के अन्त में टरटूलियन ने कहा था, "वह भी इन्सान ही हैं जो कि इन्सान बनने वाला है, बीज में ही फल का अस्तित्व भी है।'' प्रभु का प्रेम तो उस अजन्मे च्चिच्चु से भी उतना ही है जितना अन्य किसी मानव से। ईसाई मतानुसार प्रभु ने मनुष्य के स्वयं अपने हाथों से अपना रूप देकर बनाया और उसमें अपनी साँस देकर प्राण फूँके। उस मनुष्य को जो कि भगवान का ही रूप है उसके अस्तिव को गर्भ में ही समाप्त करना बाइबिल के अनुसार घृणित कृत्य है।

Thursday, January 8, 2009

मुझको अपने गले लगलो ...............


प्रस्तुती : शशि बाला अग्रवाल,

33, सरस्वती विहार अलीगढ़ 0571-2743847

यहाँ मैं अपनी एक कविता प्रस्तुत करना चाहती हूँ:

भ्रूण हत्या पर गर्भा से कन्या कह रही है {यह कल्पना की गई है}

मुझको अपने गले लगले ईया मेरी प्यारी मां

तुमको क्या बतलौं मैं की तुमसे कितना प्यार है॥

भाई से कुच्छ ना मंगु मैं,ना पापा से आस करूँ।

अपने बाल पेर जिंदा रहकर, जीवन से संघर्ष करूँ॥

कभी किरण बेदी बनकर सेवा से नाता जोड़ू।

तुमको क्या समझौं मैं की तुमसे कितना प्यार है,

मुझको अपने गले लगलो...............

कभी बनू शुषमा स्वराज मैं, और काबी इंदिरा गाँधी,

कभी बनू मैं मायावती तो, और कभी सनसनी पारी।

कभी बनू मैं प्रतिभा पाटिल,टन मान तुझ पेर वरुण॥

तुमको क्या बतलौं मैं की तुमसे कितना प्यार है।

मुझको अपने गले लगलो....................

मान मेरी टू कहा मान ले, तेरा मान हर्षित कर डून,

दुनिया मैं आ जाने दे टू, उँचे पद पेर कम करू,

चाहे कुच्छ भी बन जौन मैं, मनसा प्युरे कर डून॥

कैसए हो एहसास तुम्हे की, तुमसे कितना प्यार है।

मुझको अपने गले लगलो ...............

Wednesday, January 7, 2009

गर्भस्थ शिशु को इस अधिकार से वंचित करके माता-पिता भगवान के ही गुनाहग़ार हो जाते हैं।

वह स्थान बदलता है, दर्द, शोर व रोशनी पर प्रतिक्रिया करता है यहाँ तक कि उसे हिचकियाँ भी आती हैं। उसके बाद तो वह बस आकार में बढ़ता है व उसके बाल आदि उगते हैं। डाक्टरों को गर्भपात कराने आने वाले लागों को इन बातों की पूरी जानकारी देनी चाहिए, जिससे कि उन्हें पता चल सके कि जिसे वह खत्म करवाने आए हैं वह मात्र एक मांस का टुकड़ा नहीं उनका बच्चा है। (इस प्रकार हो सकता है कि उनके हृदय में करुणा, ममता का संचार हो जाए और वह अपने ही बच्चे को मारने का पाप करने से बच सकें।) साथ ही धर्माचार्य भी यदि धर्म, ग्रन्थों में कहीं गर्भ के मूल्य की बातों को विज्ञान की कसौटी पर कस कर लोगों के सामने रखें तथ भू्रण हत्या को एक घिनौना, अक्षम्य, पाप के रूप में सबके सामने रखें तो इस समस्या से छुटकारा पाया जस सकता है। आखिर मानव को भगवान ने कुछ विच्चेष बनाया है उसे विवेक व मन दिया है, जिसका प्रयोग वह प्रभु को स्मरण भजन करने व मोक्ष पाने हेतु कर सकता है। मानव जन्म अनमोल है। इसमें असीम सम्भावनाऐं छुपी हैं। गर्भस्थ शिशु को इस अधिकार से वंचित करके माता-पिता भगवान के ही गुनाहग़ार हो जाते हैं। जब इन्द्र गर्भिणी कयादु का अपहरण कर रहे थे व हिरण्यकच्चिप के शिशु को गर्भ में ही समाप्त करने वाले थे तो नारद मुनि ने उन्हें यही sandesh दिया था कि कयादु के गर्भ में भगवान का भक्त पल रहा था व सही माहौल देकर उन्होंने उस बालक को भक्त प्रहृलाद बना भी दिया। जन-जन तक पहुँचाना आवच्च्यक हो गया है जो कि धर्माचार्य ही कर सकते हैं। माता-पिता बच्चे को जन्म देने का माध्यम हैं उसे सही संस्कार देना महौल देकर उसका सर्वांगणि विकास करना माता-पिता का कर्त्तव्य है जिससे कि बच्चा या बच्ची अपने जीवन में छुपी अपार सम्भावनाओं को साकार कर सके।

Tuesday, January 6, 2009

क्या भू्रण हत्या किसी भी तरह से धर्म संगत है?

एक महत्वपूर्ण बात और जो धर्माचार्यों के मुख से निकलने पर और अधिक महत्वपूर्ण बन जाएगी वह है क्या भू्रण हत्या किसी भी तरह से धर्म संगत है? धर्मों में तो ऐसा माना ही जाता रहा है कि मानव भू्रण को भी एक विकसित मानव के समान सम्मान दिया जाना चाहिए। ऐसे में लिंग परीक्षण व भू्रण हत्या का विचार मात्र क्या पाप नहीं। माता के अण्डे तथा पिता के वीर्य के निेपवद होते ही भ्रूण का जीवन प्रारम्भ हो जाता है ऐसा तो आज विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि (तीन हफ्ते के भू्रण का भी हृदय धड़कना शुरू कर देता है। चार हफ्ते का भू्रण भले ही सिर्फ एक चौथाई इन्च का होता है पर उसके सिर तथा शरीर को देखा जा सकता है और तो और आँखें, कान व मुख भी बनने द्याुरू हो जाते हैं। छः-सात हफ्ते में मस्तिष्क में भी हलचल महसूस की जाती है। तथा आठवें हफते में जब अधिकांच्च गर्भपात होते हैं बच्चे के हाथ पैर यहाँ तक कि उँगलियाँ भी बन चुके होते हैं। नौ दस सप्ताह का भू्रण अपने हाथ से पकड़ सकता है व मुँह से अंगूठा भी चूस सकता है। और तीन माह पूरे होते होते, जब भू्रण परीक्षणों के बाद गर्भपात करवाया जाता है। भ्रूण एक पूरे बच्चे का रूप ले चुका होता है।

Monday, January 5, 2009

हजरत मोहम्मद ने कन्याभ्रूण हत्या पर पाबन्दी लगाई थी

हज+रत मोहम्मद ने समाज सुधार विच्चेषकर नारी की स्थिति सुधारने के क्रान्तिकारी प्रयास किए थे। उन्होंने कन्याभ्रूण हत्या पर पाबन्दी लगाई थी, तथा स्त्री को सम्पत्ति पाने तथा उसकी वसीयत करने का अधिकार दिया था। स्वच्छंद बहुपत्नी प्रथा पर लगाम लगाई थी तथा स्त्रियों को अपना दहेज रखने की इजाज+त दी गई थी। फिर भी आज अधिकांच्च धर्मों में वंच्च तो पुरुष के नाम से ही चलते हैं। अपने वंच्च को आगे बढ़ाने की चाह लोगों का पुत्र के प्रति रुझान और बढ़ा देती है। ऐसे में धर्माचार्यों का उत्तरदायित्व बनतस है कि वे लोगों को यह भी बताऐं कि कन्याभ्रूण या च्चिच्चु की हत्या करके वे समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को तो पूरा नहीं ही कर रहे हैं साथ ही यह इतना घृणित पाप है कि इससे मुक्ति संम्भव नहीं कन्याभ्रूण की हत्या करके उस पाप पर अपने वंच्च की बेल को आगे बढ़ाने से उनका वंच्च कलंकित होगा- उसका मान, सम्मान, सम्पत्ति स्वास्थ्य का क्षय होगा। जिन बुराइयों की जड़े धर्म में अधवा इसके गलत vyaakhhyaa में है उनका उन्मूलन धर्म के माध्यम से ही सम्भव है क्योंकि "धर्म मूल्यों तथा मान्यताओं का वह युग्म है जो हम अपने मन मस्तिष्क पर धारण करते हैं।'' मौलवियों को भी लोगों को बताना चाहिए कि हज+रत मोहम्मद की पत्नी आयेच्चा इस बात का उदाहरण है कि हज+रत साहब स्त्रियों के द्वारा स्मरण में ंबजपअम हिस्सेदारी के पक्षधर थे।

Sunday, January 4, 2009

भारतीय सभ्यता सबसे प्राचीन है.

प्रारंभ में विचारों का आदान-प्रदान मौखिक रुप से होता था, उन्हें स्मृति द्वारा संप्रेषित किया जाता था। लिपियों के आविष्कार से विचार लिपिबद्ध होने लगे, इससे ज्ञान की विधाओं, दर्च्चन, गणित, ज्योतिष आदि को स्थायी रुप से संरक्षित किया जाने लगा। धीरे-धीरे नगर-राज्यों का क्षेत्र विस्तृत हुआ, कालान्तर में वे साम्राज्य बन गए और उनके मुखिया सम्राट बनें। कुछ सम्राट शूर-वीर होने के साथ विद्वान भी थे, उन्होंने अपने सलाहकारों में विद्वानों को भी स्थान दिया, कृतित्व को राज्याश्रय प्राप्त होने लगा, जो ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में सहायक हुआ। प्राचीन काल के विद्वान प्रायः बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न थे, गणित, दर्च्चन के अतिरिक्त वे राजनीति तथा रणनीत में निपुण युद्धवीर भी थे। यहां इस बात को भी रेखांकित करना आवच्च्यक है, कि लगभग सोलहवीं शताब्दी तक विज्ञान को ज्ञान की अन्य धाराओं से वियुक्त नहीं किया गया था। सभ्यता के तीनों जन्म-स्थलों में उपर्युक्त उपलब्धियां हुई, फिर भी, अधिकांच्च पाच्च्चात्य ग्रंथों में, मिश्र, यूनान तथा बेबीलोन की उपलब्धियों का ही विच्चद वर्णन तथा यच्चोगान मिलता है, प्राच्य योगदानों को यथोचित स्थान तथा महत्व नहीं दिया गया है। अब, पाच्च्चात्य विद्वानों द्वारा मिश्र तथा यूनान की सभ्यता को प्राचीनतम तथा श्रेष्ठतम सिद्ध करने की चेष्टा पर प्रच्च्नचिन्ह लगाए जाने लगे हैं। विज्ञान की पाच्च्चात्य धारा में चीन तथा भारत के विज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान है, फिर भी, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पाच्च्चात्य धारा का मूल स्रोत मिश्र तथा यूनानी सभ्यता है। अतः भारत तथा चीन की उपलब्धियों की संक्षिप्त चर्चा करते हुए यूनान की उपलब्धियों पर प्रकाच्च डाला जाए। नई खोजों से स्पष्ट हो रहा है कि प्राचीन काल में वैज्ञानिक विकास की तीन समान्तर धाराएं थी, प्रथम, भारत (१५०० ई. पू. - १२५०), द्वितीय चीन (१०३० ई. पू. - १३००) तथा तृतीय पच्च्िचमी तथा निकटवर्ती देच्च, १००० ई. पूर्व - ४५०, (मिश्र, ग्रीस, तथा बेबीलोन)। इस विभाजन का अभिप्राय १,५०० वर्ष (ई. पू.) से पहले की उपलब्धियों को नकारना नहीं है, इस काल में भिन्न देच्चों के योगदान विवादास्पद हैं, उनके प्रमाण, अपेक्षाकृत, उतने सुनिच्च्िचत तथा सर्वमान्य नहीं है।

Saturday, January 3, 2009

चरक संहिता का मुख्य मूलपाठ ईसा से सात सदी पूर्व लिखा गया

चरक किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि कृद्यण यजुर्वेद में उल्लेखित एक आदम जाति का नाम है। चरक संहिता का मुख्य मूलपाठ ईसा से सात सदी पूर्व लिखा गया ऐसा विच्च्वास किया जाता है, यद्यपि इसमें बहुत पूर्व में प्रचलित विद्या का भी समावेच्च है। यह चिकित्सा को आठ भागों में बाँटती हैं। (१) शल्य उपकरण के साथ

(२) छोटे आपरेच्चन सामान्य छेदन के साथ

(३) शरीर का चिकित्सीय उपचार

(४) भूत प्रेतों का उपाय

(५) बच्चे और स्त्री की बीमारियों के सम्बन्ध

(६) उल्टी और काटने का उपचार

(७) स्वास्थ्यवर्धक रसायन

(८) स्वास्थ्य एवं पौरुष वर्धन के उपाय।

Friday, January 2, 2009

क्रान्ति मशाल मेरे राष्ट्र को थमा दो।


अपने ही बीजों का बोयेगें पौधा।

पौधों से निर्मित वृक्ष बनेंगे॥

रूपान्तर अपने को करते रहेंगे।

दिशा........................................॥

त्याग और बलिदान का भाव हैं आप तो।

क्रान्ति मशाल मेरे 'राष्ट्र' को थमा दो॥

क्रान्ति मशाल मेरे राष्ट्र को थमा दो।

दिशा.........................................॥

Thursday, January 1, 2009

पीड़ा पतन प्रभु मेरे मिटा दो।


प्रेम और पौरुष की ज्योति हैं आप तो।

पीड़ा पतन प्रभु मेरे मिटा दो॥

पीड़ा पतन प्रभु मेरे मिटा दो।

दिशा......................................॥

हम भी खिले थे कभी मुरझा गए हैं।

मुरझा गए पर, गिरे तो नहीं हैं॥

अधिक और निर्माण करके रहेंगे।

दिशा......................................॥

प्रस्तुति : अंजलि शर्मा