आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, February 28, 2010

रंग तो लेकिन रस नहीं

आज होली हे । सुबह सुबह होली की आग लेकर जब जौ की बाली भून कर बांटने के लिए निकले तो टोलियों को घूमते देखकर बचपन में लोट गए । बच्चे और बड़े और महिलाएं सभी की टोलियाँ आपस में जौ बाँटते समय हैप्पी होली कह कर जौ दे रहे थे। राम राम सा शब्द सुनाने को आतुर कानों में हैप्पी शब्द किंचित भी हप्पिनेस नहीं ला पा रहा था। क्या मेरे कान कान राम राम सा सुनाने को तरस जायेंगे।
रसिया तो अब बिलकुल खो ही गए हें। एक फागुनी का फोन आया और उसने भी कहा हैप्पी होली । मैंने अपनी इस फागुनी को एक रसिया सुनाया तो बोली -- ये क्या हे। अरे रसिया नहीं समझोगी तो रस कहाँ से आएगा । और यदि रस नहीं तो क्या जीवन ।
फागुन का महीना तो रस का महीना हे । और रसिया हे रसों का राजा। तो आओ आज एक रसिया की अन्तर ही गा लेते हें-----
पर्यो पायो रे पर्यो पायो नाथ मिलमा गाल पर्यो पायो।----------
कौन गाँव के बिछुआ कही प्यारे कौन गाँव को साँचो हे
बिछुवन को अजब तमाशो हे-----------

Saturday, February 27, 2010

होली की शुभ कामना

होली की शुभ कामना सभी को डॉक्टर संजय सिंह एवं रूद्र सन्देश परिवार की और से