जिसे प्राप्त करने के बाद कुछ और शेष नहीं रह जाता। दुःख तब प्राप्त होता है जब हम अनुकूलता की आशा, सुख की इच्छा रखते हैं। इस आशा और इच्छा का परित्याग करके पीड़ा को प्रसन्नता पूर्वक सहना ही प्रतिकूलता का सदुपयोग है। यह हमें उस दुःख से उबार लेता है। सुख का सदुपयोग कैसे हो? इससे पहले जानें कि सुख किनके कारण होता है? यदि कोई व्यक्ति लखपति हो तो उसे अपने लखपति होने का अभिमान या सुख तभी होगा यदि उसके सामने वाला लखपति न हो। परन्तु यदि वह जिस जिस से मिले वे सभी करोड़पति हों तो उसे लखपति होना भी सुख नहीं देगा। इससे सिद्ध होता है कि हमारा सुख हमें दीन-दुःखी, अभाव ग्रस्त लोगों के द्वारा दिया गया है, अतः इसे इन्हीं की सेवा में लगा देना ही सुख का सदुपयोग है। यही सुखी का कर्तव्य है कि वह सुख बाँटे। जो सुख दुःख का भोग करता है, उस भोगी का पतन हो जाता है और जो सुख-दुःख का सदुपयोग करता है, वह इनसे ऊपर उठकर अमरता का अनुभव करता है।
Friday, December 5, 2008
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