पवित्र बाइबल में इन तमाम बातों का वर्णन है तथा परिणाम भी स्पष्ट रूप से बताया गया है।
१। शकुन विद्या : परिचित आत्माओं की सहायता से भविष्य को पहले से देख लेना। इस प्रकार का कार्य करने वाले व्यक्ति को पत्थरवाह करके मार डालने का प्रावधान था।
२। भूत-सिद्धः यह एक मृतक व्यक्ति से सम्पर्क स्थापित करना है। शाऊल मानक राजा ने शमूएल नबी से उसके मरणोपरांत एक स्त्री की सहायता से सम्पर्क स्थापित किया था - यह कार्य परमेश्वर की दृष्टि में अर्त्यत घृणित पाप है जिसे वैश्यावृत्ति समान बताया गया है।
३. पूर्वानुमान ;च्तवहतवेजपबंजपवदद्धः यह शकुन विचारना तथा पशु-पक्षियों की अंतड़ियों का निरीक्षण करना सम्मिलन हैः जिसका दण्ड बेबीलोन के राजा को परमेश्वर द्वारा दिया गया - यह मिस्त्र देश का महान विज्ञान था। इसमें विज्ञान ;खगोल एवं फलित ज्योतिषद्ध और परिचित आत्माओं का मिश्रण था वर्तमान काल में इसका प्रयोग सम्मोहन विद्या, मस्तिष्क के उपचार और भविष्य बताने में किया जाता है।
५। जादू टोना - इसमें तीन सूत्र हैं रसायन एवं खगोल विज्ञान तथा परिचित आत्माऐं। इनका वर्णन तथा प्रेरितों के कार्य में पाया जाता है।
६. ओझाई :- यह दुष्टात्माओं के साथ सचेत रूप में सहअपराध करना है। पौलुस प्रेरित अपने पत्रों में इसकी घोर भर्त्सना करते हैं। यह आवश्यक रूप से शैतान की आराधना है और इसे विद्रोह गिना गया है। ऐसा करने पर राजा शाउल का सर्वनाश हुआ तथा उसका राज्य छीन लिया गया।
उपरोक्त सारी विधियों तथा तंत्र मंत्र को बाइबल में नकारा गया है तथा घृणित पाप की संज्ञा दी गयी जैसा कि नीचे उल्लिखत हैः ÷÷तुझमें कोई ऐसा न हो जो...... भावी कहने वाला, व शुभ अशुभ मुहुर्तों का मानने वाला व टोना व तांत्रिक व बाजीगर, व ओझो से पूछने वाला, व भूत साधने वाला, व भूतों को जगाने वाला हो। क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वह सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं........'' । पवित्र धर्मशास्त्र बाइबल में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट दृष्टिगोचर है कि जो भी विधि या क्रिया-कलाप सर्वज्ञानी, सर्वसामर्थी और सबसे प्रेम करने वाले परमेश्वर की महिमा को घटाती है तथा मनुष्यों के जीवन के प्रति उसके उद्वेश्यों को छिन्न-भिन्न करती है, हमें उनसे हमेशा दूर रहना चाहिए। प्रिय पाठकों! परमेश्वर और मनुष्य का शत्रु शैतान हमेशा यह चाहता है कि मनुष्य परमेश्वर की महिमा न करे या परमेश्वर की सामर्थ को कमतर करके आंके तथा स्वयं के प्रयास से परमेश्वर तक पहुँच सके। ऐसा नहीं हो सकता परमेश्वर को प्राप्त करने का एक ही उपाय है और वह स्वयं का १००ः समर्पण समर्पण, शून्य हो जाना तभी परमेश्वर हमें अपनी सारी शक्तियाँ प्रदान करता है जो मानव एवं प्रकृति के कल्याण हेतु है। उनसे किसी प्राणी का अहित नहीं हो सकता।
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