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Sunday, December 14, 2008

धन्यवाद आतंकवादी अंकल

जन्मेजय चौधरी क्लास ११ अ, मु, वि, अलीगढ

आप लोग चोंक रहे हैं ना कि मै आतंकवादी अंकल को धन्यवाद कर रहा हूं। क्या इसके लिए मुझ पर देश के साथ गद्दारी का इल्जाम लगना चाहिए? पिछले दिनों में आतंकवादियों ने बहुत बुरा किया। हमारी बम्बई पर उन्होंने जुल्म ढहाया। हमारे बहुत से सिपाही भी मार डाले। बहुत से लोग स्टेशन पर बेवजह मर गये। वाकई बहुत बुरा हुआ। मुझे भी बहुत दुख हुआ। मेरा मन हुआ कि मैं सुपरमैन बन कर पूरे पाकिस्तान को उड़ा दूं। सारे के सारे आतंकवादियों को सानी दयोल की तरह जोर जोर से चीख कर मार डालूं। मैंने गुरुजी से भी मन ही मन प्रार्थना की कि मुझे सुपरमैन बना दें।

इसी प्रार्थना के साथ, मैं पाकिस्तान और आतंकवादियों को कोसता कोसता सो गया। रात को सपने में मैंने देखा कि मेरे पास गुरुजी आ गए। उन्होंने मुझसे आंख बंद करने को कहा। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा और आंख खोलने को कहा। अरे मैं तो बदल गया। मेरे सर पर सनी का सा कपड़ा बंधा था। अरे मैं तो सुपरमैन की तरह उड़ने लगा। मेरे शरीर के चारों ओर असले ही असले बंधे थे। अब मैं पूरा सुपरमैन बन गया था। मुझे तो मुंहमांगी मुराद मिल गई थी। मैंने बिना एक मिनट की देर किए आतंकवादियों को ढूढना शुरू कर दिया। मैं उड़कर सीधे पाकिस्तान पहुंच गया। मैंने देखा वहां आतंकवादियों का कैम्प चल रहा था। एक दाड़ी वाला मौलाना कश्मीरी टोपी लगाकर वहां इकट्ठे हुए आतंकवादियों को बरगला रहा था। मैने गुस्से में भरकर वहां बमबारी शुरू कर दी। उनके बंकरों को नष्ट कर दिया। मैं जगह जगह उड़कर आतंकियों के ठिकानों को देख लेता था। फिर उन पर टूट पड़ता। और थोड़ी ही देर में वहां लाशों के ढेर लग जाते। इस तरह मैंने अनेक आतंकवादियों के कैम्पों को समाप्त कर दिया। आखिर में मैंने आतंकवादियों के बौस को पकड़ लिया और सनी की तरह उसकी तुड़ाई शुरु कर दी। आतंकवादियों के सरगना ने मुझसे कहा अल्लाह के लिए मुझे छोड़ दो नहीं तो तुम्हारा देश तबाह हो जाएगा। मैं ओर ज्यादा का्रेध में भरकर उसे मारने लगा। उसने कहा कि तुम मेरी बात को गम्भीरता से सुनो। हमारी वजह से ही तुम हिन्दुस्तानी एक रह पाते हो।

अगर हम हमला नहीं करते हो तो तुम आपस में लड़ना शुरू कर देते हो। कभी मराठी बिहारी के नाम पर तो कभी मीणा गूजर के नाम से तो तमिल सिंघली के नाम से या हिन्दू मुस्लिम के नाम से। यही सदा से होता आया है। तुम हिन्दुस्तानी तो केवल बाहर वालों से लड़ने के लिए एक होते हो अन्यथा सभी अलग अलग हो। तुम्ही देख लो हिन्दुस्तान या तो अंग्रजों से लड़ने को एक हुआ था या आतंकवाद से लड़ने को। अरे हम तो विदेशी हैं हमसे तो लड़कर जीत लोगे। लंकिन अगर हम न होंगे तो तुम आपस में लड़कर मर जाओगे। और हर मौत तुम्हारी ही हार होगी। उसकी बातें मुझे वाकई जंचने लगी थीं।

मैंने कहा थैंक यू अंकल तुम ठीक कह रहे हो। आज तुम्हारे हमले से कम से कम देश तो एक हो रहा है। वरना पिछले महीने तक तो मनसे के हमले में लोग भी मर रहे थे और देश भी टूट रहा था।

1 comment:

ashish said...

is balak ne hum sabhi logo ko ek baar sochane ke liye vivash kar diya hain ki kya humane aise hi aazad barat ki kalpana ki thi.