अत्रि मुनि के तीन पुत्र थे दुर्वाशा, दत्तात्रेय और चन्द्रमा। ये तीनों क्रमशः शिव, विष्णु और ब्रह्मा के अंश थे। मुनि ने इन तीनों को तीन प्रकार के तन्त्रों की दीक्षा दी थी। दुर्वाशा को शैव तन्त्र, दत्तात्रेय को अघोर तन्त्र और चन्द्रमा को वैष्णव तन्त्र की दीक्षा दी गयी। इन में से चन्द्रमा की तन्त्र परम्परा आज विद्यमान नहीं है।
प्राचीन काल में शैव, शाक्त, पाशुपत, भागवत, लकुलीश, गाणपत्य, पांचरात्र आदि तन्त्रों का प्रचलन इस देश में था। इनके अतिरिक्त बौद्ध और जैन तन्त्र भी इस देश में प्रचलित थे। कालक्रम के प्रभाव से बौद्ध तन्त्र भारत के बाहर चला गया और शैव आदि में से अनेक तन्त्रों की परम्परा उच्छिन्ना हो गयी। सम्प्रति केवल शैव और शाक्त तन्त्र ही जीवित हैं। इनमें भी आडम्बर घर करता जा रहा है।
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