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Saturday, December 6, 2008

तंत्र वेदों से भी पहले से हैं?

तंत्र शब्द आते ही सामान्य जन के अंदर डर का भाव पैदा हो जाता है। मैंने अपने एक प्रोफेसर मित्र से तंत्र विशेषांक छापने की इच्छा प्रकट की। मित्र ने कहा यह जादू टोना होता है। एक मित्र ने कहा कि तंत्र तो बुरी चीज हैं। एक अन्य मित्र ने कहा कि यह तो धर्म के नाम पर फरेबियों का कारोबार है। इन प्रतिक्रियाओं ने मेरे मन को दृढ़ किया कि तंत्र के बारे में सही जानकारी की जाए।

रुद्र संदेश पत्रिका का उद्देश्य ही सत्य की खोज है। साथ ही यह एक प्लेट फार्म है। इस प्लेट फार्म पर कुछ जिज्ञासु हैं और कुछ ज्ञानी। मंजिल सब की एक है। इंजन सभी का रुद्र है। रास्ता सभी का सत्य मार्ग है। हर अखबार का दूसरा पन्ना तांत्रिकों के विज्ञापनों से भरा है। ये विज्ञापन भी सामान्य जन को भ्रमित करते हैं। तंत्र का नाम आते ही कंकाल का चित्र दिमाग़ में बनने लगता है।

महाराज जी कहते हैं कि तंत्र तो वेदों से भी पहले से हैं। तंत्र विशुद्ध विज्ञान है। फिर उसकी छवि इतनी खराब क्यों है? इन समस्त बिन्दुओं ने मुझे प्रेरित किया कि तंत्र के विषय में विविध जानकारियाँ एकत्रित की जाऐं। इस पर सार्थक बहस हो। जन सामान्य के मानस पटल पर अंकित तंत्र की तथाकथित तस्वीर से धूल हटे, और सत्य मार्ग के समस्त दीक्षित, श्रावक, सत्संगी एवं साधक तंत्र का शोधन कर सत्य को आत्मसात करें।

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