आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, December 25, 2009

जो जिन्दगी भर कुकर्म करे वह कैसे मुक्त हो?

प्र्रकृति का दर्शन है प्रवृत्ति व्यवहार का स्वरूप। और निवृत्ति आत्मा का पुरुष का। महाराज, ये आपने वर्णन तो कर दिया कथा का। हकीकत में क्या है? कथा तो बहुत अच्छी है। बहुत बारीक चीजें हैं जो सत्संग करते हैं-गहराई से, वे इनकी बारीकियों को समझते हैं। और तो अधूरे लोग हैं वह तो कुतर्क करके आँखें निकाल कर लड़ने को तैयार हो जायेंगे। बच्चों की किताब नहीं है, न्दपअमतेपजल के बवनतेम की बात नहीं है। ये तो अपनी हकीकत है और हकीकत के लिए, वही हकीकत चाहिए। साढ़े छः अरब आदमी हैं, दुनियां में, एक भी पूरा प्रवृत्ति मार्ग वाला है? और साढ़े छः अरब आदमियों में एक भी पूर्ण निवृत्त है? नहीं है। तो महाराज, मुझे तो ये बताओ जो जिन्दगी भर कुकर्म करे वह कैसे मुक्त हो? क्योंकि गल्तियाँ तो सबसे होती हैं। राम से, कृष्ण से, राधा से, सीता से, रुक्मिणी से जितने भी महापुरुष हुए गल्तियाँ सबसे हुई हैं। नर और नारायण निवृत्त हैं, वह भी प्रवृत्त हो जाते हैं। सनकादि प्रवृत्त हैं, वह भी निवृत्त हो जाते हैं। प्रवृत्ति में निवृत्ति है, निवृत्ति में प्रवृत्ति है, न प्रवृत्ति है, न निवृत्ति है, प्रवृत्ति भी है और निवृत्ति भी है। ये जो ज्ञान का रास्ता है-निवृत्ति और प्रवृत्ति ये तो अप्राप्य है, मैं तो वह हकीकत पूछ रहा हूँ आपसे।

हर-हर महादेव शम्भो। काशी-विश्वनाथ शम्भो।

Monday, December 14, 2009

सौ प्रतिशत प्रवृत्त कोई है तो प्रकृति है

बैठ कर भोजन करें, खड़े होकर कभी भी नहीं करें। इस तरह से मैंने तुम्हें बैकुण्ठ बताए, स्वर्ग बताए, नर्क बताए और मुक्ति भी बताई। प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग दोनों मार्ग बताए। ये शास्त्रों की कथा है तो बहुत सुन्दर है महाराज। लेकिन आप खुद जानते हैं कितने लोग हैं जो प्रवृत्ति को जानते हैं और प्रवृत्ति पर चले हैं? है कोई एकाध? शास्त्र में जो प्रवृत्ति बतलाई हैं, कोई एक भी आदमी दुनियाँ में हैं जो उस प्रवृत्ति मार्ग पर चला है। नहीं है। हो ही नहीं सकता। और जो निवृत्ति बताई है कोई एक भी है, जो पूरी तरह निवृत्त हो। सत्य यह है कि सौ प्रतिशत प्रवृत्त कोई है तो प्रकृति है, सौ प्रतिशत निवृत्त कोई है तो-पुरुष है तीसरा तो कोई न हुआ, न है, न होगा। हरे रामा.........................................

Sunday, December 13, 2009

जैसा खाते हैं वैसी बुद्धि बनती है .

भगवान को स्मरण करे अपने भोजन में से पाँच आहुतियाँ अग्नि देव को अर्पित करें। फिर भोजन देवताओं को निवेदन करें

'त्वदीयमस्तु गोविन्दम्‌ तुभ्यमेव समर्पये''।

ऐसे भोजन करने से हृदय के रोग, ब्लड़ के रोग और दिमागी परेशानी कम होती है। ये डायबिटीज+, सुगर, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, ये क्यों हो रही हैं? बिना नहाए-धोए, बैठे-उठे, लोग भोजन करते हैं। खड़े होकर पानी पियोगे तो डायबिटीज+, सुगर और ल्यूकोरिया बनेगा। आज-कल ज्यादातर आदमी खड़े होकर ही खाते हैं। बाजार में खड़े-खड़े बोतल पियेंगे तो बीमार शरीर बनेगा ही। डायबिटीज+ बनेगा, ल्यूकोरिया बनेगा, किड़नी और लीवर खराब होंगे। क्योंकि जो तुमने खड़े होकर खाया और पिया है वह सीधा जाकर आँतों पर बोझ बन जाता है, आँतें कमजोर होती हैं तथा ेमगनंस नाड़ियों पर वजन पड़ता है ये खराब होती हैं। इसीलिए जो आदमी ज्यादा मौडर्न है वह ज्यादा खतरनाक है, खराब है। बैठे करके भोजन करने से पेट की आँतें पूरा काम करती हैं। बैठकर भोजन करें, लेकिन अपने घुटने और पंजे को पेट से चिपका के नहीं दूर रख के। खड़े होकर भोजन करने से गधे जैसी बुद्धि बनती है। आज-कल आदमी जल्दी बूढ़ा हो जाता है जैसे गधा जल्दी बूढ़ा हो जाता है। पहले सत्तर साल का आदमी भी जवान है और आज का सत्रह साल का लड़का भी बूढ़ा हो गया।

हरे रामा.........................................