सौन्दर्य लहरी में शंकराचार्य ने माँ पार्वती को माध्यम बनाकर उनके सौन्दर्य का वर्णन किया है। बहुत से ज्ञानी भी यहाँ पर भ्रमित हो जाते हैं। जबकि वास्तविकता तो दूसरी ही है। यह मात्र पार्वती का सौन्दर्य वर्णन नहीं है अपितु तंत्र की श्रेष्ठतम व्याख्या है, जिसके माध्यम से पूरे तंत्र को समाहित कर यह स्पष्ट किया गया है कि बिना तंत्र के जीवन की पूर्ण व्याख्या सम्भव नहीं है। इसके बिना श्री यंत्र और श्री चक्र को समझना सम्भव भी नहीं। शरीर के अंदर इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना जैसी नाड़ियों एवं षट्चक्र और देवता रूपी शक्तियों के केन्द्रों की व्याख्या एवं सहायता से ही योग प(ति के साधना क्रम को समझा जा सकता है। यह शरीर अपने आप में पूर्ण श्री यंत्र बनाया जा सकता है और समस्त शक्तियाँ बीज रूप में शरीर में समाहित हैं। उन्हें जानने की आवश्यकता है और गुरु के आदेशानुसार क्रिया करना है। यदि इनका जागरण कर लिया जाए तो शरीर में ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है।
Wednesday, December 10, 2008
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