एक एक अङक में आठ आठ ग्रन्थ है। ६४ भैरवागमों की चर्चा के बाद ६४ शाक्तागमों की भी चर्चा यहाँ प्रासंगिक है। जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी आनन्दलहरी (सौन्दर्यलहरी) में इनका संकेत दिया है
इन ६४ शाक्त तन्त्रों के नाम महामाया तन्त्र, योगिनीकाल, तत्त्वसम्वर, सिद्धभैरव, वटुक भैरव, कंकाल भैरव आदि है। इनके विषय अन्यथा दर्शन (जैसे घट का कुत्ता के रूप में दिखलायी पड़ना), योगिनीसमूह का दर्शन, एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व के रूप में देखना (जैसे पृथिवी तत्त्व को जलतत्त्व के रूप में देखना इसी तन्त्र का प्रभाव था कि युधिष्ठिर के यज्ञ में दुर्योधन को जल की जगह पृथिवी तथा पृथिवी की जगह जल दिखलायी दिया था) पादुकासिद्धि, सम्भोगयक्षिणी की सिद्धि, मारण आदि हैं। ६४ शाक्त तन्त्र ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य ६४ तन्त्र ग्रन्थों की भी सूची मिलती है। वे हैं काली, तारा, मुण्डमाला, निर्वाण, शिवसार आदि। ये सभी शाक्त तन्त्र जागतिक सिद्धि अथवा ऐहिक ऐश्वर्य के लाभ के लिये हैं।
शाक्ततन्त्रों के अतिरिक्त शुभागम पत्र्चक की भी चर्चा मिलती है। वे हैं वशिष्ट संहिता, सनक संहिता, सनन्दन संहिता, सनत्कुमार संहिता और शुक संहिता। ये संहितायें समय मार्ग से सम्बद्ध हैं।
Friday, December 19, 2008
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