आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, December 6, 2008

मनुष्य उस परमात्मा का ही अंश है

मनुष्य उस परमात्मा का ही अंश है, जो कि सम्पूर्ण आनन्द को देने वाला है। उस परमात्मा का अंश होने के कारण उसका गुण भी हममें अवश्य ही विद्यमान है। परन्तु हम तो उस मृग के समान हैं जो स्वयं अंदर स्थित कस्तूरी की सुगंध से आकर्षित हो पूरे जंगल में भटकता फिरता है। फिर जब वो थक हार कर बैठता है तब उसे अहसास होता है कि यह सुगन्ध तो उसकी स्वयं की नाभि से आ रही है। हम भी अपने स्वरूप को बिसर कर सुख शांति आनन्द की तलाश में संसार में भटकते फिरते हैं, जबकि सच्चा शाश्वत आनन्द तो हमारे स्वरूप में ही स्थित है। बस हमें अपने उस प्रेममय, आनन्द, शान्ति, मौन से परिपूर्ण स्वरूप का ज्ञान हो जाए, जो कि "हम यह शरीर नहीं आत्मा हैं'' ऐसा मानने से होता है।

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