आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, June 24, 2008

गुरु की आवश्यकता


गुरुब्रह्‌मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
उपरोक्त पंक्तियां हमारे धर्मशास्त्रों में गुरु की महिमा का वर्णन करती हैं। गुरु को ही ब्रह्‌मा, विष्णु, महेश जो क्रमशः चराचर जगत की उत्पत्ति कारक, पालनहार एवं संघारक शक्तियां हैं, तीनों रूपों में माना गया है। और फिर इसी श्लोक में गुरु को साक्षात परब्रह्‌म भी माना गया है तथा उनका नमन किया गया है। सामान्य व्यवहार में गुरु का अर्थ शिक्षक से लगाया जाता है। लेकिन कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी उंचा स्थान दिया है ।
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पाँव ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय॥
उपरोक्त दोहे में कबीर दास जी ने बताया कि गुरु और ईश्वर दोनों अगर एक साथ खड़े हों तो किसका नमन पहले करें अर्थात दोनों में अधिक पूज्यनीय कौन है। फिर इसी दोहे ही दूसरी पंक्ति में आपने स्पष्ट किया कि गुरु की ही बलिहारी है क्योंकि ईश्वर तक पहुंचाने वाला तो गुरु ही है। आखिर ऐसा क्या है गुरु में कि उसे ईश्वर से भी उपर का दर्जा दिया गया है। उपरोक्त दोहे से ही वैसे तो काफी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर को बताने वाला , उससे साक्षात्कार कराने वाला गुरु ही तो है। शाब्दिक दृष्टि से गुरु शब्द के दो अर्थ अधिक सटीक जान पड़ते हैं। गुरु शब्द 'गु' एवं 'रु' दो अक्षरों के युग्म से निर्मित होता है। 'गु' का अर्थ है अंधकार तथा 'रु' का अर्थ है प्रकाश की ओर। अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। अंधकार अज्ञानता का सूचक है और प्रकाश ज्ञान का।अर्थात वह जो अज्ञानता को हटाकर ज्ञान के प्रकाश का आलोक कर दे।
आध्यात्मिकता में तो यह सम्भव ही नहीं कि बिना गुरु की सहायता के कोई दो पग भी आगे बढ़ सके, हॉं, दो पग भटक सकता है। लेकिन लौकिक व्यवहार में भी हर किसी को जीवन के हर मोड़ पर किसी ऐसे की ज़रूरत होती है जो उसे सही मार्ग बताए। बालक नौ महीने मॉं के गर्भ में रहता है। वहॉं मॉं ही उसकी गुरु होती है जो बीज से बाल्य अवस्था में आने तक उसे वह सब कुछ सिखा देती है जिससे कि वह इस धरा पर आकर जी सके। क्या मॉं गर्भ काल में उसे बोलकर कुछ सुनाती है या उसे लैक्चर देती है ?नहीं ना। फिर भी वह सब कुछ सीख जाता है। क्योंकि वह उससे पूरी तरह से जुड़ा रहता है, लघु रूप में। उन नौ महीनों में वह जो सीखता है उतना तो अपने पूरे जीवन भर में नहीं सीख पाता। क्यों? इसके लिए हमें गुरु शब्द के दूसरे अर्थ पर ध्यान देना होगा। गुरु शब्द का अर्थ बड़ा भी है। बड़ा क्या है ?इसका कोई पैमाना नहीं है। बड़ा होना सापेक्षता पर आधारित है। हर कोई किसी से बड़ा है। अर्थात शिष्य जितना लघुरूप होता जाता है गरु उतना ही विशाल। मॉं के गर्भ में हम अपनी लघुता के कारण ही सीख पाते हैं।

सच ही कहा गया है :

सब धरती कागद करों ,लेखनी सब वनराय।

सात समुद्र की मसि करों ,गुरु गुन लिखा न जाए।।

http://rudragiriji.net

Monday, June 23, 2008

एक कहानी दिल से निकली

मैं कमरे में पड़ा अपने को कोस रहा था कि देखो इस इक्कीसवीं सदी में मुझ जैसे मूरख हैं। मुझे रहरहकर अपनी पत्नी पर गुस्सा भी आ रहा था कि उसने क्या सोचकर इस बाबाजी को मेरे पल्ले बाँध दिया था। मैंने फिर झांककर कमरे में देखा बाबा तो ठाठ से मेरे आलीशान पलंग पर सो रहा था और मैं सोच सोच कर कुढ़े जा रहा हूँ।ै कितना उल्लास था मन में जब सोनम ने मुझे यह बताया कि वह एक ऐसे संत को भी जानती है जो किसी से कुछ चाहता ही नहीं। न किसी के धन से प्रयोजन न किसी के वैभव से। वह तो मस्त अपनी साधना में रत रहते हैं। बाबा की तारीफ करते करते वह अघाती न थी। मेरी मान्यता सदैव से इन बाबाओं के बारे में अच्छी नहीं रही। मैं जानता था कि ये केवल वे वंचित तबके के लोग हैं जिनको कुछ मिला नहीं, और ये पाने के लिए प्रयास भी नहीं करते। अरे इस जगत में ऐसा कौन जिसे लक्ष्मी आकर्षित न करे। लेकिन सोनम की बातों और चारों ओर फैली बाबा की शौहरत ने मेरे अहम को चुनौती सी दे डाली थी। बेमन से मैं एक बार बाबा के दर्शन को भी गया। बाबा के चेहरे का आभामण्डल वास्तव में देखते ही बनता था। गाँव के बाहर टूटे से झोंपड़े में पड़े बाबा के जब मैंने दर्शन किए ओर उनके प्रवचनों को सुना तो मुझे अपना दर्प टूटता सा लगा था। बाबा तो वास्तव में त्यागी हैं। कोई चाहना नहीं। मेरी इंपोर्टेड गाड़ी की तरफ वे तो तनिक भी आकर्षित न हुए थे, और मेरी आशा के विपरीत विदाई के पल उन्होंने मुझसे या किसी अन्य से कुछ चाहा भी नहीं। उनका त्यागी स्वभाव देखकर मुझे अपना कद बौना लगने लगा था। मेरी आस्था इस बाबा में बढ़ती जा रही थी। कुछ अद्रश्य शक्ति तो जरूर थी जो बरबरस ही आकर्षित करती थी। मुझे विश्वास हो चला था कि बाबा मुझसे कुछ भी लेने वाले तो हैं नहीं, तो क्यों न उनसे कुछ आग्रह कर लिया जाय। एक दिन मैंने बाबा से आग्रह किया कि बाबा क्या आप मेरी गाड़ी में मेरे घर तक चलेंगे। बाबा तुरंत गाड़ी में सवार। मुझे झटका सा लगा। अरे यह तो तन कर मेरी ही सीट पर बैठ गए। मैं तो सोचता था कि बाबा कहेंगे, ÷÷बच्चा हमें इन गाड़ियों से क्या लेना हम तो मस्त फकीर ऐसे ही भले''। घर आकर मैंने उनसे पूछा कि वे क्या खाना पसंद करेंगे, उन्होंने किसी भी चीज को खाने से इंकार न किया। क्या बाबा एसी में साऐंगे? बाबा बोले क्यों नहीं। मैंने अपना सबसे कीमती बैडरूम शिष्टाचार या अपने वैभव को दिखाने के लिए उन्हें दिखाया था, लेकिन यह तो हद है कि बाबा उसी पर पौढ़ गए। आज पंद्रह दिन बीत गए बाबा मस्त हाईक्लास जीवन जी रहा है। मैं कमा रहा हूँ बाबा मौज मार रहा है। मैं पहले ही कहता था लेकिन जाने क्या मति मारी गयी जो इस बाबा को घर ले आया। इसने तो मेरे घर, गाड़ी सब पर कब्जा सा कर लिया है। अगली सुबह मैं झुंझलाया सा बैठा था कि बाबा ने पूछ ही लिया, ÷दीप कुछ परेशान दिखते हो। मैंने कहा बाबा वैसे तो कोई बात नहीं लेकिन यह बताओ जब तुम्हे सुविधा मिलीं तो तुम भी उनका मजा लेने मे नहीं चूक रहे हो तो तुममें और मुझमें क्या फर्क है? बाबा बोले बेटा फर्क तो वहीं बताऐंगे जहाँ से तुम्हारे मन में बीज पड़ा है। मैं और बाबा अपनी मोटर से उसी कुटिया पर पहुँचे। बाबा ने कहा अब गाड़ी यहीं छोड़ देते हैं कुछ दूर पैदल चलकर तुम्हें अंतर बताएंगे। बाबा पैदल पैदल आगे बढ़ते जाते और मैं उनके पीछे। नदी किनारे आकर मैंने अपनी यात्रा रोकी और कहा कि बाबा अब तो बताओ। बाबा ने कहा क्या जल्दी है नदी पार करते हैं फिर इस विषय पर वार्ता करेंगे। अब मेरा सब्र जवाब दे रहा था। मैंने कहा बाबा रात हो चली है। मेरा महल, मेरी गाड़ी, मेरे बच्चे सब तो वहाँ हैं मुझे लौटकर जाना है। बाबा मुस्कराए बस यही फर्क है। तुमने महल, गाड़ी, वैभव को अंदर बना रखा है और मैं उसके अंदर रहकर आया हूँ।

Sunday, June 22, 2008

सेतुबंध रामेश्वरम(महाराज जी के भागवत वचनामृत से )

....................... आज लोग सेतुबंध रामेश्वरम के अस्तित्व को लेकर प्रश्न उठा रहे हैं। कहते हैं कि राम के होने का कोई सबूत नहीं है। रामेश्वरम के बनने का कोई सबूत नहीं है। आने वाली पीढ़ी जब ये पढ़ेगी या सुनेगी कि राम नहीं हुए सीता नहीं हुईं, राम रावण का युद्ध नहीं हुआ, धर्म और अधर्म के बीच होने वाले युद्ध को ही नकार दिया जाएगा और धर्म की विजय के लिए साक्ष्य माँगे जाएंगे, तो कोई धर्म को क्यों मानेगा? चरित्र की बात क्यों करेगा? कहेगा सब बेमानी है। राम को न मानने वाले किसी भी प्रकार से धार्मिक लोग नहीं हो सकते हैं। ये वधिक हैं, हत्यारे हैं, ये मवाली हैं। आज ये ताकतवर हो गए हैं। राम कमजोर हो गया है। कुकर्म मजबूत हो गया है, सुकर्म मजबूर हो गया है। राम को मानने वाले कमजोर हो गए हैं। स्वार्थ राम पर भारी पड़ रहा है। यदि राम को मानने वालों में ताकत हो तो राम को कौन मार सकता है? कौन राम के अस्तित्व को नकार सकता है? लेकिन राजन! कलियुग में राम के मानने वाले नहीं रहेंगे। इन वधिकों से धर्म की रक्षा तुम्हीं कर सकते हो। और जो राजा होकर राम की रक्षा नहीं कर सकता, धर्म की रक्षा नहीं कर सकता, उसका स्वयं ही नाश हो जाता है। क्योंकि धर्म पर ही यह ब्रह्माण्ड टिका हुआ है। धर्म से ही, ये धरती, ये सूरज, ये चाँद और ये तारे टिके हुए हैं। समुद्र अपने धर्म को छोड़ दे तो, ये दुनियाँ डूब जाएगी, आग अपने धर्म को छोड़ दे तो, ये दुनियाँ जल जाएगी। सूरज अपने धर्म को छोड़ दे तो, दुनियाँ में जीवन समाप्त हो जाएगा। धर्मो रक्षति रक्षितः धर्म के लिए जीना चाहिए, धर्म से जीना चाहिए, धर्मयुक्त जीना चाहिए।
धर्म से विरति, योग ते ज्ञाना। ज्ञान मोक्ष प्रद वेद बखाना॥
परीक्षित महाराज ने उस कलियुग का वध करने के लिए जब धनुष वाण उठाए तो वह उनकी शरण में आ गया। शरण में आए हुए का वध करने वाले का नाश होता है, ऐसा विचार कर परीक्षित महाराज ने कहा कि, "तू मेरे राज्य की सीमा से बाहर चला जा।'' अब कलियुग ने कहा कि महाराज आप तो समस्त भूमण्डल के राजा हैं। ऐसा कौन सा स्थान है जो आपके अधीन न हो। जब आपने मुझे जीवन दान दिया है तो रहने का स्थान भी दीजिए। मुझे ऐसा स्थान बता दीजिए जहाँ मैं रह भी सकूँ। कलियुग की प्रार्थना पर महाराज परीक्षित ने कहा कि मैं तुझे रहने के लिए चार स्थान देता हूँ- द्यूतं, पानं, स्त्रीं एवं सूया।
द्यूतं:- यानि जुआ। जहाँ भी जुआ होता है, वहीं कलियुग है। जो अपने बच्चों का जरा भी ध्यान रखता हो उसे जुए और जुआरी से दूर रहना चाहिए। क्योंकि जहाँ जुआ होता है वहाँ न धन रहता है, न कोई सम्बन्ध रहता है और न वहाँ धर्म रहता है। जुए की आदत में आदमी इतना खराब हो जाता है कि वह इसके लिए कुछ भी कर सकता है। इसलिए जुआ खेलने से दूर रहें।
पानं:-शराब तथा शराबी। तुम सोचते हो दिन भर काम करके थके हुऐ हैं थोड़ा सा पीलें तो, नींद अच्छी आ जाएगी, कोई बात नहीं है, तो क्या फर्क है इसमें। फिर इस के लिए आदमी कोई गलत काम भी करें? कोई किसी और की बात करने लगे कि भाई मेरा मन तो इस पर आ गया है। अगर ऐसा करुँगा तभी जी सकूँगा नहीं तो मर जाऊँगा। ये आदमी का बेजातपना है, कि शराब से नींद आ जाती है। शराब से नींद नहीं आती। नींद तो बेकार हो जाती है। रिश्ते बेकार हो जाते हैं और चरित्र तो उसमें होगा ही नहीं। जो शराब और शराबी में रहेगा वह क्लेश में रहेगा।
स्त्रियः-जिस घर में स्त्री लम्बरदार होती है वहाँ क्लेश रहता है। अनावश्यक क्लेश होता है। स्त्री को घर की मालकिन होना चाहिए पर घर के मामलों का मालिक तो उसका पति होना चाहिए। स्त्री को केवल घर तक रहना चाहिए। बाहर सुरक्षित नहीं है। बाहर के लिए बुद्धि नहीं है। बेरोजगारी इसीलिए बढ़ रही है कि लड़कों के लिए भी नौकरी नहीं है, तो लड़कियों को नौकरी देकर क्या संदेश जाएगा। नौकरी करने वाली किस बच्चे की माँ बनेगी? कैसे बहन बनेगी? कैसे बेटी बनेगी? कैसे पत्नी बनेगी? नौकरी करके तो कमाने का दिमाग़ बन गया उसका। प्यार और ममता का दिमाग़ तो खत्म हो गया। जहाँ स्त्रियाँ लम्बरदार हो वहाँ पर क्लेश रहता है। रावण की बहन थी शूर्पणखा थी, लम्बरदार थी, लन्का बर्बाद हो गई। कलियुग तुम वहाँ पर रहना जहाँ स्त्रियाँ लम्बरदार हों।
सूयाः- एक दूसरे की तरक्की को देखकर कुढ़ना। एक दूसरे को आगे बढ़ते देख कर खुश रहना वहाँ पर क्लेश नहीं रहता, पर जहाँ एक दूसरे की तरक्की को देखकर कुढ़ना हो वहाँ पर क्लेश रहेगा। तू वहाँ पर ही रहना। तो जुआ, शराब, स्त्री और सूया ये चार स्थान राजा परीक्षित ने कलियुग को रहने के लिए दे दिए।
फिर कलियुग ने परीक्षित से एक जगह और माँगी। तो परीक्षित ने उन्हें अनुमति दी कि सुवर्ण जहाँ हो वहाँ रहना। सुवर्णः-चमक। जिसकी आँखों में, दिमाग़ में चमक भर गई हो उसके चारों तरफ क्लेश रहेगा। जो दूसरे के चमकीले मकान को देख रहा है वह चैन से नहीं रह सकता है वह चोरी कर सकता है, डकैती डाल सकता है, अपहरण-हत्या कुछ भी करवा सकता है। किसी के धन सम्पत्ति, बहू-बेटी की चमक दिमाग़ में है, वह शान्ति से नहीं रहने देती है बर्बाद कर देती है। इसलिए दिमाग़ में जो चमक भर गई है वो शान्ति को छिन्न-भिन्न कर देती है।
महाराज परीक्षित का जो चमकीला मुकुट था, उसमें कलियुग प्रवेश कर गया। मुकुट कहते हैं बुद्धि को। बुद्धि में कलियुग आ जाता है तो जीवन बर्बाद हो जाता है। वहाँ से परीक्षित महाराज आगे गए तो हिरनों का पीछा करते शिकार करते हुए, उनको बहुत जोर की प्यास लगी तो उन्होंने सोचा चलो यहीं पर शमीक ऋषि का आश्रम हैं। वहीं पर चलूँगा, जल पियूँगा और फिर शाम को राजधानी के लिए चलूँगा। आश्रम में पहुँचे तो देखा शमीक ऋषि संध्या वन्दन कर रहे हैं। शमीक ऋषि ने उनका अभिवादन नहीं किया, वे तो प्रभु के वन्दन में लगे थे। राजा परीक्षित को बहुत क्रोध आया, क्योंकि दिमाग में चमक थी, कि राजा हूँ, महाराजा हूँ, पढ़ा लिखा हूँ । मैं इतना पढ़ा लिखा,मन्त्री हूँ, सुन्दर हूँ यह अन्धा कर देता है। आदमी यही सोचता है कि उसने मेरी इज्जत नहीं करी। मैं ऐसे खानदान का हूँ, ऐसे पद पर हूँ, वह अपने आप को समझता क्या है? अरे अपने घमंड में, बड़प्पन में वह किसी के बड़प्पन को नहीं समझता है। अरे, ठीक है, तुम बहुत पढ़े लिखे हो सुन्दर हो, पद वाले हो पर दूसरे को भी देखो वह भी तो कुछ है। बड़ा आदमी वही होता है जो दूसरे को सम्मान देता है। और जो दूसरे को सम्मान नहीं दे सकता वह सबसे घटिया आदमी होता है। जिस कुँऐ में पानी नहीं है वह किसको पानी पिलाएगा? और जिस कुँए में पानी है वह किसको प्यासा लौटाएगा? जो बड़ा है वह सबको बड़प्पन और सम्मान देगा और जो घटिया है, नीच है वही किसी को बड़प्पन और सम्मान नहीं देगा। "झूठ ही लेना, झूठ ही देना, झूठ ही भोजन, झूठ चबैना" जब हम अपना बड़प्पन दूसरे के ऊपर छोड़ें। हम बड़े कब हैं? जब दूसरे हमें बड़ा समझें तब। हम छोटे कब हैं? जब हम खुद को बड़ा समझें और दूसरे को कुछ ना समझें तब। जो लेना है वही दुनियाँ को दो। जो दुनियाँ को दोगे वही तुम्हें मिलेगा। यदि दुनियाँ को सम्मान दोगे तो तुम्हें मान-सम्मान मिलेगा और अगर दुनिया से सम्मान लोगे तो जो भी तुम्हारे पास है वह भी तुमसे छीन लिया जाएगा। दूसरे को नीचा समझने में आदमी समझता है कि मैं बड़ा हो गया और दूसरे को सम्मान देने में समझता है कि मैं नीचा हो गया। यही उल्टी बुद्धि है।
मरा हुआ साँप लटका दिया परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में। इस महात्मा ने मेरा सम्मान नहीं किया। फिर वे वहाँ से चले गए। वहाँ शमीक ऋषि का जो पुत्र था श्रृंगी, छोटा सा पाँच वर्ष का। उन्होंने देखा कि मेरे पिता के गले में साँप लटका कर जो उनका अपमान किया गया है। उन्होंने कौशिकी नदी का जल हाथ में लेकर श्राप दिया कि, "जिसने मेरे पिता के गले में मरा हुआ साँप लटकाया है, मैं श्राप देता हूँ कि सात दिन के भीतर वह तक्षक नाग द्वारा डसा जाएगा और मृत्यु को प्राप्त होगा।''

Saturday, June 21, 2008

आध्यात्मिक मूल्यों को समर्पित मासिक पत्रिका
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