आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Monday, June 13, 2011

हर जगह ज्ञान है हर जगह आनन्द है

.....बजह यही है कि मछली के अन्दर पानी पहुँच नहीं पा रहा है। पानी में है, बाहर भीतर पानी है। कबीर दास जी ने कहा है, कि
"पानी बिच मीन प्यासी, मोहे सुन सुुन आवत हाँसी''
हर जगह ज्ञान है हर जगह आनन्द है फिर भी आदमी मूर्ख है और दुखी है। वजह क्या है? कि मछली उलटेगी तो उसके मुँह में पानी आऐगा। मछली नहीं उलटेगी तो भले ही पानी में ही है, पर प्यासी मरेगी। हर जगह परमात्मा है, हर जगह ज्ञान है फिर भी मूर्ख होकर, दुःख से आदमी मर रहा है। उलटना नहीं जानता।
उलटना यही है-"मैं' को छोड़कर के, गुरु की तरफ। कोई भी महापुरुष हो जो हमारी दिशा को बदल सकते हों, उनकी तरफ समर्पित होना चाहिए। इस लालच से नहीं कि इन्होंने मुझे दिया है तभी मैं इनके लिए समर्पित होऊँ। कोई भी ज्ञानी पुरुष हो, कहीं भी हो सभी के लिए समर्पित होना चाहिए। ये उन के लिए समर्पण नहीं है ये अपनी आत्मा के लिए, अपने ज्ञान के लिए अपने आप के लिए समर्पण होता है। अपनी जिन्दगी के लिए होता है।
बात वहीं पर चल रही थी। जिन्दगी को चलाना बड़ी बात नहीं है। मक्खी, मच्छर भी जी लेते हैं। गधा होता है, वह भी पूरी जिन्दगी जी लेता है, बड़े मजे से जीता है। सबसे बुरा सुअर होता है, वह भी पूरी जिन्दगी जी लेता है, बड़े मजे से जीता है लेकिन जिन्दगी किसके लिए? उलटने के लिए। जो उलटना सीख गया। उलटना कहो या सुनना कहो एक ही बात है, ज्ञान तो तुम्हारे भीतर है जैसे ही तुम उलटे तुम्हारा कल्याण हुआ।
"उल्टा नाम जपा जग जाना''
बाल्मीकी चोरी डकैती, बदमाशी करते थे, किसी की सुनते ही नहीं थे। महात्मा आऐ-ऐ ठहरो, ठहर गए। क्या है तुम्हारे पास? यहीं रख दो। उन्होंने कहा भईया हम तो अपनी लड़की की शादी के लिए जमीन बेच करके लाए हैं, मर जाऐंगे, बारात आई है। कोई सुननी नहीं है, दूसरे को समझना ही नहीं है। जब दूसरे को सुनना नहीं है और फिर जब सुना और समझा तो-
"बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।''
शास्त्रों को सुनों और समझो। हम से जो बड़े बूड़े है, उनसे सुनो और समझो। बड़े लोगों को सुनना और समझना। हर माँ-बाप को अपने बच्चे को यही सिखाना चाहिए। लेकिन माँ क्या सिखाती है-चाची से मत बोलियो, चाचा से मत बोलना, अम्मा बहुत दुष्ट है, चाचा के लिए पचती है। बाबा तेरा बहुत खराब है, उसे गाली देता है। मम्मी खुद बाहियात है तो औलाद तो वही बनेगी। गुरु खुद बाहियात है कहता है,÷÷उस कथा में मत जाना।'' कुछ ऐसे गुरु हो गए हैं, जो कहते हैं कि गीता मत सुनना, रामायण मत सुनना, मन्दिर मत जाना, वेद मत सुनना, घण्टा मत बजाना, बाबा जी के पास मत जाना। बाहियात मम्मी-पापा, बाहियात हो गए बाबा जी और गुरु। चेला और औलाद का फिर क्या होगा?