आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, December 9, 2008

प्रेम और निर्दयता भला एक साथ कैसे रह सकते हैं ?

gat aalekh par bhaai ankitji kee prem se saraabor paatee milee use jyon kaa tuon yahan prakashit kar rahe hain. ankit ji ko hriday kee gaharaayiyon se saadhubaad.

बहुत सुन्दर लेख है । प्रेम और निर्दयता भला एक साथ कैसे रह सकते हैं ? परमेशवर अपने प्रति जीव से उसके मन की कुरबानी मांगता है । वो मन जो अन्यथा अपने अहम को और माया के संसार और सांसारिक सम्बन्धों को ही प्राथमिकता देता है, अपने आत्मा-राम को नही । अपने मन को इसकी सारे गर्व , सारे मोह और सारी ईच्छाओं के साथ दिये बिना किसी को परमेश्वर के प्रेम(भक्ति) की सच्ची खुशी मिल ही नही सकती । आज की ईद जीव को इसी समर्पण की शिक्षा है ।सच्चे स्वामी के प्रति की गई कुर्बानी धन्य है , पर उस परम आत्माराम के पति ऐसी समपूर्ण कुर्बानी के नाम पर अगर हम किसी जीव को कष्ट पहुँचाते हैं , तो वास्तविक भक्ति नही होती । दूसरा किसी की पीडा को ना देखकर ये मन और पक्का ही हो जाता है , साथ ही साथ जीव अपने सिर पर कर्मों का भार और लादता है । कठोर मन तो कामनाऐं करने वाले मन से भी ज्यादा कंजूस होता है , फिर प्रीतम को क्या अर्पित किया गया ? बस एक निरिह बकरे का सिर ।

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