तंत्र शब्द 'तन्' एवं 'त्र' से मिलकर बना है। तन् अर्थात् विस्तार। शूक्ष्म का विस्तार या शूक्ष्म को मूर्त रूप देना। परमात्मा अणुरूप है और वही विस्तार करता है। यह निराकार से साकार और शूक्ष्म से अनंत का ताना बाना है।
दिव्य रुद्र ने एक बार वार्ता में कहा कि तंत्र तो अंदर छिपी हुई कल्पना को साकार करने का विज्ञान है। किसी भी ज्ञान को समझाने के लिए उपलब्ध वस्तुओं का सहारा लेना पड़ता है। आज विज्ञान जिन रहस्योद्घाटनों की बात करता है उसे हमारे मनीषी हजारों हजार साल पहले उद्घाटित कर चुके हैं।
जिस ब्लैक होल थ्यौरी की आज विज्ञान चर्चा करता है उसे हमारी संहिताओं में हजारों हजार साल पहले वर्णित किया गया। उस वर्णन के लिए मनीषियों ने जिन प्रतीकों के माध्यम से समझाया, लोगों ने उन प्रतीकों को पकड़ लिया, जिस बात को वह समझाना चाहते थे उसे छोड़ दिया।
एक उदाहरण के माध्यम से क्षमा याचना के साथ यहाँ प्रकाश डालना चाहूँगा। अगर असहमति हो तो कृपा कर मुझे अवगत अवश्य कराये। उल्लेख मिलता है कि भगवती माहेश्वरी की योनि में सम्पूर्ण विश्व विराजमान होकर प्रत्यक्ष दिखलायी पड़ता है और प्रलय काल में उसी योनि में तितोहित हो जाता है। क्या यह ब्लैक होल थ्यौरी नहीं है। जिसमें पाया गया है कि एक ब्लैक होल में यह पूरा जगत क्षण में विलुप्त हो जाता है। और उसी से निकल कर यह प्रकट होता है।
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