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Sunday, December 28, 2008

ऋषि मुनि ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए अपने आश्रम में स्कूल खोल लेते थे।

वैदिक काल में ऋषि मुनि ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए अपने आश्रम में स्कूल खोल लेते थे। वहाँ पर विद्यार्थी गुरु के परिजनों की तरह ही रहते थे। वो ज्ञान के बदले आश्रम के घरेलू काम भी किया करते थे। गुरु गृह में उन्हें च्चिक्षा के अलावा भोजन और रहने की सुविधा भी मिलती है तथा च्चिक्षा पूरी हो जाने के बाद च्चिष्य उन्हें गुरु दक्षिणा दिया करते थे। इस तरह परिवार पर आधारित च्चिक्षा साधारण तथा गुरुकुल कहलाती थी। समयान्तर यह च्चिक्षा संस्थानों में बदल गई। ऋषि मुनि समाज के साथ नदियों के किनारे रहा करते थे, बाद में ये ऋषि आश्रम विच्च्वविद्यालयों में बदल गये। आज हम यूरोप के कई विच्च्वविद्यालयों जैसे आक्सफोर्ड, केमब्रिज और सोरबोन जैसे पुराने शिक्ष्हा संस्थानों को जानते है। भारतीय विच्च्वविद्यालय जो इनसे भी ज्यादा प्राचीन थे विदेच्ची आक्रान्ता के विनाच्च के कारण जीवित न रह सकें। विध्वंस दो प्रकार का था। पहला था इन संस्थानों के मूल्यवान वस्तुओं, सोना, चाँदी की अविवेकतापूर्ण लूट। दूसरा था आक्रान्ताओं में असुरक्षा की भावना तथा उनकी यह सोच कि इन च्चिक्षा संस्थाओं का ज्ञान हमारे धर्म और विचारों को खतरा हो सकता है। इन्हीं दो कारणों से उन्होंने इन महान विच्च्वविद्यालयों को बर्बाद कर दिया।

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