आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Monday, September 27, 2010

जिन्दगी तुम्हारी किसके लिए है......

पर्व क्यों बनया गया? पर्व इसलिए है कि जिन्दगी तुम्हारी किसके लिए है। जिन्दगी कैसे चल रही है? वहां दिमांग की जरूरत है। वहाँ तुम्हारी जरूरत है। जिन्दगी किसके लिए होनी चाहिए? वहाँ तुम्हारी अहमियत मालुम पड़ती है कि तुम हो या नहीं। तुम क्या सोचते हो? क्या सोचना है? क्या सोचते हो, से बात नहीं है। क्या सोचना चाहिए, बात ये है। क्या सोचना चाहिए उसके लिए हमें महापुरूषों की शरण में जाना चाहिए। ये परम्परा है ये ज्तंकपजपवद है। जो परम्परा के साथ जुड़ते हैं, उनको जिन्दगी का जो उद्देश्य है, जिन्दगी क्या है? जिन्दगी जीने का जो आनन्द है, जो तरीका है, वो क्या है? वो उन महापुरूषों की शरण में जाने से मिलेगा। वहाँ उन महापुरूषों की शरण में जाने के लिए ये जो तुम्हारे पास किसी दिखावे की जरुरत नहीं है। उनकी शरण में जाने के लिए, उन तक पहुंचने के लिए न कोई ड्रैस काम करेगी, न तुम्हारा अंग, वंश, कुटुम्ब, धर्म, परिवार, खानदान, जाति, रिश्ता, नाता, पढ़ाई-लिखाई, सुन्दराता, कुरूपता, आँख, नाक, कुछ भी नहीं चलेगा। क्या चलेगा?

Wednesday, September 15, 2010

प्राणी का अर्थ क्या है.......

जितने भी शरीरधारी हैं, उनको प्राणी कहते हैं। प्राणी का अर्थ है- जिसके अंदर जान होती है, जिसके अंदर प्राण होता है। जिन्दगी तो किसी भी रूप में हो सकती है और जिन्दगी के लिए लोग कुछ भी करते हैं। चौरासी लाख तरह के प्राणी होते हैं, सब अपनी तरह से जीते हैं। जिन्दगी के लिए जो करना है, उसमें सोचने की जरूरत नहीं है। जैसे पानी का थ्सवू ;बहावद्ध अपने आप नीचे की तरफ होता है। पानी को कोई कुछ भी करे लेकिन वो नीचे को ही चलेगा। कोई कहे कि मैंने पानी को नीचे की गति दी है, तो कहोगे कि पानी का तो स्वभाव है, कि वह नीचे की तरफ जाएगा। ऐसे ही कोई कहे कि मैंने जिन्दगी के लिए ऐसा किया-वैसा किया, तो ये तुमने कुछ नहीं किया। ये तो होना ही था। छोटे-छोटे कीड़े-मकौडे से लेकर बडे+-बड़े विद्वान तक कैसे जीते हैं? कैसे खाते हैं? कैसे पीते हैं। उसमें कोई खास अहमियत की बात नहीं होती। उसमें तुम कहीं नहीं हो ये तुम क्या खाते हो, क्या पीते हो, क्या पहनते हो। ये कोई महत्व की चीज नहीं है। ये सारी भोग की चीजें हैं। इसमें दिमांग लगाने की कोई जरूरत ही नहीं है। ये अपने आप होता है।