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Tuesday, December 9, 2008

ईद मुबारक, ऐ खुदा के बन्दों मन की कुर्बानी दो निरीह जानवरों की नही।

आज पूरा विश्व बकरीद मना रहा है । लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं की इस पवित्र त्यौहार का वास्तविक मतलब क्या है।
मान्यता के मुताबिक अल्ल्लाह टला ने हज़रत इब्राहिम को औलाद के रूप में बेटा अता फरमाया था जिसे वे बे इंतहा मुहब्बत करते थे। उस नूरे चश्म का नाम इस्माईल था।
एक रात उन्होंने सपने में देखा की इस्माईल को अल्लाह की राह कुर्बान करना है।
इस गरज से वह उसे लेकर जंगल में गए और आँख पर पट्टी बाँध कर तलवार उसके ऊपर चला दी । खुदा ने रहमत दिखाई और बालक की जगह टुम्बा आ गया ।
इस प्रकार हज़रत इब्राहीम ने ईद के दिन सारे मुसलमानों के लिए सदाकत और इश्वर पर मिटने का संदेश दिया और बताया की आज के दिन अपनी सबसे प्यारी चीज़ खुदा को अर्पित कर दो।
साथियो आप जानते हैं सबसे प्यारी चीज़ क्या है। इंसान हर चीज़ को मन के माफिक प्यार करता है। इस प्रकार आदमी को सबसे प्यारा मन है। इसी की वह हर समय मानकर प्यार और नफ़रत करता है। इसलिए इस त्यौहार के मध्यम से हज़तर इब्राहीम साहब बताते हैं की अपना मन अल्लाह को देदो। वहां तो बस प्यार ही प्यार है। नफ़रत का नामूनिशान नहीं। इसलिए ऐ खुदा के बन्दों मन की कुर्बानी दो निरीह जानवरों की नही।

1 comment:

ankit said...

बहुत सुन्दर लेख है । प्रेम और निर्दयता भला एक साथ कैसे रह सकते हैं ? परमेशवर अपने प्रति जीव से उसके मन की कुरबानी मांगता है । वो मन जो अन्यथा अपने अहम को और माया के संसार और सांसारिक सम्बन्धों को ही प्राथमिकता देता है, अपने आत्मा-राम को नही । अपने मन को इसकी सारे गर्व , सारे मोह और सारी ईच्छाओं के साथ दिये बिना किसी को परमेश्वर के प्रेम(भक्ति) की सच्ची खुशी मिल ही नही सकती । आज की ईद जीव को इसी समर्पण की शिक्षा है ।
सच्चे स्वामी के प्रति की गई कुर्बानी धन्य है , पर उस परम आत्माराम के पति ऐसी समपूर्ण कुर्बानी के नाम पर अगर हम किसी जीव को कष्ट पहुँचाते हैं , तो वास्तविक भक्ति नही होती । दूसरा किसी की पीडा को ना देखकर ये मन और पक्का ही हो जाता है , साथ ही साथ जीव अपने सिर पर कर्मों का भार और लादता है । कठोर मन तो कामनाऐं करने वाले मन से भी ज्यादा कंजूस होता है , फिर प्रीतम को क्या अर्पित किया गया ? बस एक निरिह बकरे का सिर ।