आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, November 30, 2008

प्रार्थना कैसे, क्या तथा क्यों करें?

देवेश :- हम सभी के भीतर एक दिव्यता विद्यमान है, जिसे प्रार्थना के द्वारा जागृत किया जा सकता है।

अतुल :- उपरोक्त मतों से दो विचारधाराएं देखी जा सकती हैं- द्वैत तथा अद्वैत। द्वैतवादी मानते हैं कि हमें एक व्यक्ति के रूप में भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना कैसे, क्या तथा क्यों करें? इस पर उनके अपने-अपने मत हैं। जबकि अद्वैतवादी स्वयं तथा भगवान में भेद नहीं समझते। तत्वदृष्टि से देखें तो हमारी आत्मा भी परमात्मा का ही अंश है, ऐसा वे मानते हैं। इस प्रकार प्रार्थना का उनके लिए कोई महत्व नहीं। प्रश्न यह उठता है कि अद्वैतवादी को यह ज्ञान कैसे होता है कि द्विव्य या परमात्मा तथा उसकी आत्मा एक ही है तथा ऐसा पूर्ण बोध होने से पूर्व वह क्या करता है? उत्तर- कहा जाता है कि या तो तुम कर सकते हो...... या जान सकते हो.... जब आप जानते हैं तो यह सिर्फ जानना ही होता है जो शेष रहता है तथा जिसे जाना जाए, वह खो जाता है।............... तो आप कुछ न करें................. बस रहें। यह मेरी व्यक्तिगत राय है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार ज्ञान के लिए.