आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, November 22, 2008

प्रार्थना का महत्व

प्रार्थना शब्द दो शब्दों के योग से बना है प्रार तथा धना। प्रार का अभिप्राय प्राप्त करने से है तो धना का धन से। धन क्या है? सामान्य व्यवहार में हम रुपये, पैसे, सम्पत्ति को धन समझते हैं लेकिन क्या यह वास्तविक धन है? धन वह है जो सदैव आबश्यकता पड़ने पर काम आवे। क्या रुपया या सम्पत्ति सदैव काम आ सकती है? शायद नहीं। तो फिर ऐसा कौन सा धन है जो सदैव काम आ सके।

वह केवल ज्ञान है जो सदैव साथ रहता है और कभी भी काम में आ सकता है। ज्ञानीजन सर्वदा और सर्वत्र पूज्यनीय होते हैं। विश्व के समस्त धर्मों, मतों एवं सम्प्रदायों में प्रार्थना का विधान है। उसके रूप अलग-अलग हैं। देश काल परिस्थिति के अनुसार प्रार्थना का स्वरूप बदलता है। भाषा और लिपि के अनुसार शब्द बदलते हैं लेकिन प्रार्थना तो सभी करते हैं। गोस्वामी जी ने मानस में कर्म की प्रधानता कही तो श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को कर्मयोगी बनने के लिए प्रेरित किया, बुद्ध व्यक्तित्व के उन्नयन के लिए कर्म पर बल देते हैं तो मुहम्मद साहब, मूसा, ईसा भी विश्व को कर्म प्रधान मानते हैं। धर्मग्रंथों में लिखा है कि ईश्वर ने सर्वप्रथम मानव को कर्म करने के लिए धरा पर भेजा। चाहे कहीं वह सजा के रूप में ही क्यों न हो। गीता में भगवान ने भक्तों के चार प्रकार बताए हैं। भक्तों की यह चार श्रेणियां उनके द्वारा भगवान के सम्मुख की जाने वाली प्रार्थना, याचना या विनती के आधार पर की हैं।

आर्त भक्त दैहिक, दैविक या भौतिक कष्टों से आर्त होकर भगवान की शरण हो कष्टों के निवारण हेतु प्रार्थना करते हैं, वहीं अर्थार्थी परिवार की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। जिज्ञासु भक्त उनके स्वरूप के ज्ञान हेतु सन्मार्ग पर लगाने की प्रार्थना करते हैं जबकि इन सबमें श्रेष्ठ ज्ञानी भक्त भगवान को सर्वाधिक प्रिय हैं जो आत्मज्ञानी होने के कारण स्वयं भगवत स्वरूप होते हैं, उन पर तो भगवत्‌ कृपा की वर्षा स्वयं ही होती है।

सभी धर्मों में प्रार्थना पर विशेष बल दिया जाता है। प्रार्थना में लोगों के विश्वास का अंदाज विभिन्न धर्मों के प्रार्थना स्थलों पर आने वाले लोगों की संख्या से लगाया जा सकता है। यह स्थापित सत्य है कि उद्देश्य कुछ भी हो, उसकी प्राप्ति के लिए हमें भगवान के अलावा किसी का आधार नहीं है। उसकी कृपा से क्या सम्भव नहीं - गूंगा वाचाल हो जाए, लंगड़ा भी पर्वत को लांघ जाए। लोगों का विश्वास है कि प्रभु के प्रति श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करने पर वह सुनते हैं और इच्छित फल प्रदान करते हैं।

5 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी बातें लिखते हें आप। आशा है आगे भी ऐसा ही पढने को मिलता रहेगा।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया व सुन्दर पोस्ट है।एक अच्छी पोस्ट पढ वाने के लिए आभार।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया व सुन्दर पोस्ट है।एक अच्छी पोस्ट पढ वाने के लिए आभार।

Himwant said...

tसकाम और निष्काम प्रार्थना मे अध्यात्मिक दृष्टी से क्या फरक है? भौतिक कामना से प्रार्थना करना या मनौती मांगना उचित है या नही ? इस विषय पर चर्चा अपेक्षित है।

Dr. Sanjay Kumar said...

Bahan Sangeeta Puri, Bhai Paramjeet tatha Himwant ji ko unki tippaNiyon ke liye dhanyawaad....
mein to vahi likhta hoon jo Guru likhaate hain.....
Bhai Himwant ne ek bada hi sundar sujhaav diya hai ki is vishaya par aur charcha ki jaye .....
is vishay par aapki jigyasa ko shant karne hetu jaldi hi Srimad Bhagwad Gita ka ek slok gooraartha sahit post kiya jayega....
isme prabhu ne kaha hai ki aarta, arthaarthee, jigyaasu aur gyaani sabhi bhakton me se Gyani bhakt unhe sabse adhik priya hai....
parantu inme se koi bhi Hritgyaanaah ki shreNi me nahin aata kyonki vah kaisi bhi ichchha poorti ke liye prabhu kripa ka hi aadhaar leta hai....anya kisi ka nahin...

punah dhanyawaad...aasha hai aap sabhi aise hi apni tippiNiyon se mera utsah varddhan karte rahenge...