आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, November 21, 2008

कल्याण का मार्ग सत्य का अनुसरण ही है।

ईशोपनिषद् में भक्त समस्त प्राणिमात्र का पोषण करने वाले सत्य स्वरूप सर्वेश्वर, जगदाधार परमेश्वर से कहता है कि हे सत्य स्वरूप! आपका श्रीमुख स्वर्णिम, ज्योतिर्मय सूर्य मण्डल रूप पात्र से ढका हुआ है। अपने सत्यनिष्ठ भक्त की मनोकामना पूर्ति हेतु आप अपने सच्चिदानन्द स्वरूप को निरावरण कर प्रत्यक्ष प्रकट करें:

'हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌। तत्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये॥'

सत्ता मात्र 'सत्‌' है। इसके अतिरिक्त प्रकृति और प्रकृति का कार्य क्रिया और पदार्थ है, वह 'असत्‌' न कभी था, न है और न कभी रहेगा और 'सत्‌' का कभी भी अभाव नहीं होता। 'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।' अतः मानव को विवेकपूर्वक अपने तन, मन एवं बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। स्वेच्छाचार पतन की ओर ले जाता है, सदाचार नैतिकता का आधार है। कल्याण का मार्ग सत्य का अनुसरण ही है।

प्रस्तुति : -परमजीत

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