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Wednesday, November 19, 2008

सत्य की सत्ता सार्वभौमिक व सर्वोपयोगी है

सत्य की सत्ता सर्वोपरि है। आस्तिक या नास्तिक सभी इसे स्वीकारते हैं। सत्य की खोज, मानव की चिर पिपासा बनी हुई है। सभी धर्म, सभी विचारक सत्य के अन्वेषण हो ही अभीष्ट मानते हैं। वृहदारण्यक उपनिषद् की श्रुति 'असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतमगमय' २०वीं सदी में मार्गदर्शन का अद्भुत कारण बनी। तीनों ही महावाक्य सत्य की ओर ही इंगित करने वाले हैं। ज्योति और अमृत भी सत्य का ही स्वरूप है। महात्मा गांधी ने 'असतो मा सद्गमय' से प्रकाश पाकर 'सत्य एवं अहिंसा को अपनाया। इसी के बल पर उन्होंने महाशक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को पूर्णतः छिन्न-भिन्न कर डाला था। न केवल भारतवर्ष अपितु अनेक राष्ट्र सत्य और अहिंसा के आश्रय से योरोपीय देशों की सैंकड़ों वर्षों की पराधीनता से मुक्त हो गए। यह सत्य की महिमा है।

प्रस्तुति : -आशीष

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