१। पूजा स्थल के लिए भवन का उत्तर-पूर्व कोना सबसे उत्तम होता है, पूजा स्थल की भूमि उत्तर-पूर्व की ओर झुकी हुई और दक्षिण-पश्चिम से ऊंची हो, आकार में चौकोर या गोल हो तो सर्वोत्तम होती है।
२। मंदिर के चारों तरफ़ द्वार शुभ हैं।
३। मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा उस देवता के प्रमुख दिन ही करें या जब चंद्र पूर्ण हो अर्थात् पंचमी, दशमी एवं पूर्णिमा तिथि को मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करें।
४. शयनकक्ष में पूजा स्थल नहीं होना चाहिए। अगर जगह की कमी के कारण मंदिर शयनकक्ष में बना हो तो मंदिर के चारों ओर पर्दे लगा दें। इसके अलावा शयनकक्ष के उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा स्थल होना चाहिए।
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