मनुष्य का प्रारब्ध उसके कर्मों से तथा भाग्य उसके परिश्रम तथा क्रियाओं से निर्धारित होता है। जब हम प्रार्थना करते हैं तो ऊर्जा तथा ज्ञान के अनन्त स्रोत से हमारा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है तथा हमें उनसे आशीष तथा मार्गदर्शन प्राप्त होता है। पूर्व कर्मों पर बहुत अधिक आश्रित होने पर हम उन्नति नहीं कर सकते। अतः स्वयं के लिए तथा दूसरों के लिए प्रार्थना करो।
प्रस्तुति : सुभाष
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