हमें अपना तन, मन व धन सर्वस्व प्रभु के श्री चरणों में अर्पित कर देना चाहिए तथा उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि ''हे प्रभु! हम सेवकों का सब कुछ आपकी सेवा में समर्पित है, आप खुशी से जो भी चाहें, वह सेवा हमसे ले सकते हैं। हमें न तो सांसारिक सुख चाहिए और न ही हमें अधिकार या पद की इच्छा है। हम सिर्फ आपको प्रसन्न करना चाहते हैं। हम अपना जीवन कायरों की भाँति नहीं जीना चाहते, ना ही हम जंगली पशुओं की भाँति मरना चाहते हैं। आप हमें अपनी सेवा तथा शरण में ले लें। ताकि हम आपकी सेवा करते हुए मुक्ति पा सकें।'' यह प्रार्थना हमें हमारे अहंकार तथा सांसारिक सुख भोग की इच्छा से मुक्त करेगी तथा उस प्रभु की दया तथा कृपा का पात्र बना देगी।
प्रस्तुति : डा. रतन सैनी
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