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Tuesday, November 18, 2008

जो बोले सो निहाल सत्‌ श्री अकाल

एक फिल्म देखी थी 'जो बोले सो निहाल सत्‌ श्री अकाल''। सत्य पर विगत दो माह से चर्चा करते हुए यकायक उस फिल्म का स्मृति में आ जाना दिव्य रुद्र की कृपा मानकर मैंने उस पर चिंतन शुरू किया। मैंने गौर किया पिछले कुछ अंकों से सिख धर्म के विद्वान साथियों के लेख पत्रिका में नहीं आ रहे हैं। शायद इसी ओर दिव्य रुद्र ने ध्यान आकर्षित किया है। इस फिल्म ने अंतिम चरण में फिल्म का नायक, खलनायक को इसी आधार पर पहचानता है कि वह उसके जो 'बोले सो निहाल' कहने पर प्रत्युत्तर में ÷सत्‌ श्री अकाल' नहीं कहता। यह स्थापित मान्यता है कि चलचित्र समाज का आइना होते हैं। इस वक्तव्य को फिल्म के क्लाइमेक्स में लाकर फिल्म के निर्देशक ने बताने का प्रयास किया है कि वह सच्चा सिख नहीं जो ' सत्‌ श्री अकाल' कहकर वाक्य पूरा नहीं करता। इसका अर्थ यह हुआ कि 'जो बोले सो निहाल' पूर्ण नहीं है। पूर्णता के लिए 'सत्‌ श्री अकाल' बोलना होगा। न केवल बोलना होगा बल्कि उसे स्वीकारना होगा। प्रश्न यह उठता है कि इन तीन अक्षरों के बोलने से ही क्यों यह सिद्ध हो जाता है कि वह सच्चा सिख है, अर्थात्‌ सच्चा गुरू का शिष्य है। गुरूग्रंथ साहिब को सिख धर्म के अनुयायी सम्पूर्ण ज्ञान या सम्पूर्ण गुरू मानते हैं। अर्थात्‌ उसके लिए यही वह तत्व हैं जो उनकी अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। निहाल वही है जो यह जान जाता है कि ÷सत्‌ श्री अकाल' अर्थात्‌ सत्य वह है जिसे काल नहीं खा सकता अर्थात्‌ जो समाप्त नहीं हो सकता। जो कट नहीं सकता, जो शास्वत है, जो सदा से था और सदैव रहेगा। "सत्‌ श्री अकाल'' अर्थात्‌ सत्य अविनाशी है। हम जानते हैं कि भौतिक जगत में जो कुछ दिखता है वह नाशवान है। हर किसी को काल का ग्रास बनना है। चाहे वह राम हो, कृष्ण हो, ईसा हो, मूसा हो, मुहम्मद साहिब हों, गौतम हों, महावीर हों, चाहें गुरू नानक देव। अर्थात्‌ जिस पर ये नाम के लेबिल लगे वे सभी नाशवान थे। और जिन पर आज लेबिल लगे हैं वे भी नाशवान हैं। अगर कोई अविनाशी है, काल से परे है तो वही सत्य है और वह अविनाशी 'अकाल' क्या है। क्या वह आत्मा नहीं जो सदैव सर्वदा वस्त्रों की भाँति शरीर को बदलता रहता है और शास्वत बना रहता है। जिसको काल नहीं खा सकता है। अर्थात्‌ सिख धर्म भी कहता है कि सत्य का नाश नहीं होता। तभी तो यह कहने पर पूर्णता होती है कि 'सत्‌ श्री अकाल'। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सत्य काल से परे हैं। वही शास्वत है, हमारे अंदर का आत्मा ही सत्य है। जो सत्‌ पुरख का अंश है। इस प्रकार एक सत्‌ पुरख सत्य है, जो शास्वत है। वही अविनाशी सत्य है चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारें।

1 comment:

Anonymous said...

Satya VAKAI KAAL SE PARE HAI. Sukrana