श्रुतियां मुक्त कंठ से सत्य की प्रतिष्ठा करती हैं, उनका गुण-गान करती हैं। परमात्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है। आनन्द स्वरूप परमात्मा ही एक मात्र सत्य हैः ÷एकं सद् विप्रा वहुधा वदन्ति,' विद्वान उस एक सत्य को अनेक प्रकार से परिभाषित करते हैं, उसे अनेक नामों से जानते हैं। उस एक सत्य का दर्शन, मनन एवं निदिध्यासन ही उनका प्राप्तव्य होता है। श्री मद्भागवत महापुराण के महात्म्य के प्रारम्भ में ही उसे ÷सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे' कह कर सम्बोधित किया गया है। इस महापुराण के प्रथम स्कन्ध में मंगलाचरण के प्रथम श्लोक में ही उस विराट् परम पुरूष, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के उद्भव- स्थिति- संहार का कारण है, का 'सत्यं परं धीमहि' कह कर स्तवन किया गया है। वह एक ही परम सत्य है जो अपनी स्वयं प्रभा ज्योति से माया को सदैव एवं सर्वदा बाधित रखता है। आज के युग में भौतिक जीवन की चकाचौंध में वास्तविक सुख एवं शांति विलीन होती जा रही है। भौतिक दृष्टि से जो सर्वाधिक सम्पन्न राष्ट्र हैं, वहां आत्महत्याएं एवं मानसिक रोग बढ़ रहे हैं। पाश्चात्यता का अंधानुकरण कर बहुत कुछ हमारा देश भी इसी और बढ़ रहा है। ऐसे में अपने पुरातन ग्रन्थों का आश्रय एवं मान्यताओं की पुनर्स्थापना ही हमें शांति प्रदान कर सकते हैं और शांति एवं आनन्द निहित है सत्य के आश्रय में, सदाचरण में।
प्रस्तुति : -शील सारस्वत
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