१. श्रवण :- सर्वप्रथम पूज्य गुरुदेव सत्य का प्रकटीकरण वेदों, उपनिषदों, पुराणों, कुरान, गुरुग्रंथ साहिब आदि ओल्ड टेस्टामेण्ट, न्यूटेस्टामेण्ट के आधार पर अपने प्रवचनों के माध्यम से करते हैं। गुरुदेव स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सत्य वह है जो किसी से कटे नहीं। जिसे सभी ग्रंथ अकाट्य रूप से स्वीकार करें, वही सत्य है।
Friday, November 7, 2008
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1 comment:
शब्द "सत्य" नही हो सकते। शब्दो के अर्थ बदलते रहते है। शब्द बुद्धी का विषय है। भाव ज्यादा सक्षम है सत्य को अपने अंदर समाहित रखने में। ये पुस्तके जिनका नाम आपने लिखा है वे मृत पुस्तकें हैं। विकसित मानव के निर्माण मे उनकी कोई भुमिका नही हो सकती है - बल्कि वे बाधक हैं।
परम सत्य का दर्षण सिर्फ और सिर्फ आत्मानुभुति से हो सकता है। आज इस दुनिया मे कोई ऐसा नही जो मुझे पार लगा सकता है, सिवाय मेरे खुद के। मेरा ईश्वर, मेरा सत्य मेरे अन्दर है। मेरी प्यास ही सबसे महत्वपुर्ण है। तुम्हारे शब्द बेकार है किसी और के लिए। जब तुम खुद प्रकाशित नही हुए तो औरो को प्रकाश दिखाने ढोंग क्यो करते हो ?
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