उस्मान :- आध्यात्मा हमें प्रार्थना करना नहीं सिखाता बल्कि हमें अद्वैत की ओर ले जाता है। जब आप अपने तथा भगवान में कोई भेद नहीं जानेंगे तो प्रार्थना की आवश्यकता ही कहाँ रह जाएगी?
पूजा चौधरी :- व्यक्ति को प्रार्थना ऐसे करनी चाहिए जैसे सब कुछ भगवान पर निर्भर है तथा काम ऐसे करना चाहिए जैसे सब कुछ उसी पर निर्भर है। जिस प्रकार दिन भर शरीर पर जमी धूल, मिट्टी, पसीना तथा गन्दगी को हम साबुन, पानी आदि से धो डालते हैं उसी प्रकार मन के विकारों तथा ashuddhiyon से मुक्त करने हेतु सौभाग्य से प्रार्थना नामक कीटाणुनाशक vishanaashaka उपलब्ध है।
Friday, November 28, 2008
प्रार्थना की आवश्यकता ही कहाँ रह जाएगी?
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1 comment:
प्रार्थना मन के विकारों को दूर कर अंतःकरण को शुद्ध करती है. सच कहा -"मन के विकारों तथा अशुद्धियों से मुक्त करने हेतु सौभाग्य से प्रार्थना नामक कीटाणुनाशक vishanaashaka उपलब्ध है।"
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