अब इसमें सबसे पहले चीज आती है, सुनने की इच्छा। पिछले गुरूपूर्णिमा पर्व पर यही कहा था कि ज्ञान की जो शुरूआत होती है, वो सुनने की इच्छा से होती है। और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है, जिसको सुनने की इच्छा नहीं है, उसकी सारी बुद्धि उल्टी। क्योंकि जब आदमी सुनता है, तभी बोलना सीखता है, तभी उसके अन्दर कोई चीज आती है और सुनना नहीं जानते तो तुम कुछ सीख नहीं पाओगे और कुछ ऐसा हो जाऐगा, जिससे सुनने की चाहत ही नहीं होती। और सुनना ही चाहता है, बोलना नहीं चाहता तो उसकी इच्छा ही नहीं है, तो ज्ञान कहाँ से शुरू हुआ? हमारे यहाँ ज्ञान की जो शुरूआत है 'श्रवण' से है।
'श्रवण' का अर्थ है सुनना। पहले लोग सुनते थे। अब लोग सुनते ही नहीं हैं, इसलिए बोलते नहीं हैं। कोई बोलना जानता है? नहीं जानता। कोई नहीं बोलना जानता। बोलने की मालुम कब पड़ती है? जहाँ खाने पीने की, लेने-देने की, देखी-सुनी बात नहीं हो। उसके बारे में बात कही जाती है। खाने की, पीने की, लेने की, देने की, देखी, सुनी बाते हैं। धर्म क्या है? नीति क्या है? धर्म दिखेगा नहीं, सुनी हुई चीज है, धर्म के बारे में तुम जानते हो? नहीं जानते। कोई जानता है? सुना जरूर है। किसी से पूछो धर्म क्या है, तो कोई बता सकेगा? क्यों कि ये सुनने से आता है। ये महापुरूषों के पास बैठने से आता है, ये उनकी सेवा करने से आता है। सुनने की इच्छा सब बदल देती है। शुरूआत लेकर आती है। तुम्हारी जिन्दगी किस के लिए है, ये तुम्हारे लिए अहम चीज है। सुनने की इच्छा, लेकिन मेरे मन के भीतर ऐसे कपड़े हैं, मेरे मन के भीतर ऐसी दीवार बनी हुई है, मेरे मन के भीतर ऐसी चीजें भरी पड़ी हैं, जो कहती हैं कि,÷÷मैं जिस बात को कहुँगा वही सही है। और मैं नहीं कह पाया तो बहुत गलत हो जाऐगा।'' ये जो आदमी के अन्दर उल्टी चीज हैं, ये जो आदमी के अन्दर उल्टा वहम है, ये जो आदमी के अन्दर अपने को श्रेष्ठ योनी मान लेने की बात है। जब तक ये आग्रह नहीं जाऐगा तब तक ज्ञान की श्रेणी में प्रवेश नहीं कर सकते हो, चाहे तुम जज हो, कलैक्टर हो, प्ण्।ण्ै हो, च्ण्ब्ण्ै हो, प्रॉफेसर हो, प्रिंसीपल हो, हो सकता है कि तुमने पूरा देश ही टॉप किया हो और तुम संसार के पहले आदमी हो, लेकिन यहाँ उसका कोई महत्व नहीं है। तुम संसार के सबसे बड़े आदमी संसारी चीजों के लिए हो सकते हो, लेकिन जिन्दगी के बारे में कुछ नहीं जानते हो। हम बहुत बड़े वैज्ञानिक होते हैं, हम बहुत बड़े डॉक्टर होते हैं, हम बहुत बड़े प्रॉफेसर होते हैं, लेकिन जब अपनी समस्या आती है, तो फेल हो जाते हैं। ये जो हम पढ़ रहे हैं। बहुत सालों से पढ़ रहे हैं, लेकिन किसी वैज्ञानिक ने ैनबपकम ;आत्महत्याद्ध किया, माने कोई वैज्ञानिक अपने आप मर गया। वैज्ञानिक जो प्रकृति की बड़ी-बड़ी चीजों को जानते हैं, जिन्हें हम नहीं जानते। उन्होंने डवइपसम चीवदम बनाए, रेडियो बनाए, टी।वी सैट बनाए, और फोन बनाए, चन्द्रमा पर पहुँच गए। जो लोग चन्द्रमा पर पहुँच गये वो खोपड़ी कभी नहीं पहुँच पाती। क्यों? जान जाईए। ये बात बुद्धि की है, ये बात दिमांग की है, ये बात समझ की है। श्रवण की इच्छा। जिसके अन्दर श्रवण की इच्छा नहीं है, वो अपनी जिन्दगी के हर पहलू पर फेल होगा। चाहे कितना ही बड़ा अफसर हो, कितना भी बड़ा प्ण्।ण्ै हो। सुनने की इच्छा होती है, सही होती है, सही बुद्धि होती है, तो सुन भी सकता है और सुना भी सकता है। ऐसे कितने लोग हैं जो बोलना जानते हैं? नहीं जानते। सुनी हुई बातों को सुनाना जानते हैं। जो धर्म की चीज है, उसके बारे में बोल सकते है हैं? जिन्दगी की समस्या को नहीं सुलझा सकते। बड़े-बड़े ऊँचे मण्डलेश्वर हैं, महामण्डलेश्वर हैं, साधु हैं, महात्मा हैं, सब बड़े संयम नियम से रहते हैं। लेकिन अपने दिमांग के आगे सरैण्डर हो जाते हैं, फेल हो जाते हैं। दिमांग ऐसा बबण्डर बना देता है कि बड़े-बड़े योगी बड़े-बड़े ज्ञानी- ध्यानी की नींद नहीं, जिन्दगी बरबाद कर देता है। क्यों? कहाँ कमी रह गई। सुनने की कमी रह गयी, सुना, पर पूरा नहीं सुना। बहुत सुना, इसलिए बहुत समझ गए, लेकिन पूरा नहीं सुना इसलिए फेल हो गए। सुनने की इच्छा, सुनने की इच्छा होगी तो बुद्धि सही होगी और भुलाने की इच्छा विपरीत बुद्धि के बीच है।