आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, March 23, 2010

पशु और मानव में केवल भेद संयम से ही पहिचाना जाता है।

पशु और मानव में केवल भेद संयम से ही पहिचाना जाता है। नहीं तो छल, कपट, मक्कारी धूर्तता, लालच, दम्म, अभिमान, अकड़, भोग की पकड़, जिद्दीपना, चालाकी, विश्वास घात, घात, घँूसा, लात, लड़ाई, झगड़ा, चोरी, डकैती, बदमाशी, खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना, जागना, सन्तान पैदा करना, मैथुन, भय, खेलना, कूदना, चढ़ना, उतरना, तैरना, फिसलना, दांत पीसना, चुंबन लेना, चाटना, नाचना, गाना, सुनना, गुटबन्दी करना, राजनीति करना धूर्तता से रहना, सिद्दड़ी करना, स्वाद में गड़वड़ी देखकर मतलव के लिए गिड़गिड़ाना, सजना संवरना चमड़े का अपनापन परायापन रखना, अहंता, ममता का स्वाभाविक होना, अपना और अपनों का ख्याल रखकर कमाई करना और खर्च करना, स्वाद के लिए सड़सड़कर बर्वाद होते हुए भी जाते जी मरजाना, लत का आदि होना, साम, दाय दण्ड भेद ये सभी तो जानवर आदमी से अधिक अच्छी तरह कौन से कार्य में आदमी को मात्र नहीं दे रहा अर्थात्‌ सभी इन कार्यों में आदमी से ही अग्रणी ही है। वरन्‌ मनुष्य ने ये बातें पाशविकता से ही ग्रहण करी हैं। इसलिए ऐसे आदमी को पाशविक ही कहा जाता है। इन्सान नहीं।

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