आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Wednesday, October 6, 2010

गुरू एक मिठास की तरह से है........

तुम अपने मुँह में नमक की डली दबाओ और मिठाई खाओ तो मिठास मिल जाऐगी? नहीं मिलेगी। गुरू एक मिठास की तरह से है। गुरू की जो वाणी है, अमृत की तरह से होती है। संतों की जो वाणी है अमृत है। उस मिठास के लिए जो तुम्हारे मुँह में नमक है, उसे थूकना पडेगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो। अगर तुम ऐसा कर सकते हो तो गुरू के पास जाने के लिए न धन की जरूरत है और न किसी सिफारिश की जरूरत है, न किसी सुन्दरता की जरूरत है।

दक्षिण में एक संत हुए थे पीपा महाराज। उन के तो बाजू ही नहीं थे, घुटने से नीचे पाँव नहीं थे। शक्ल बहुत खराब थी, जैसे किसी खाली डिब्बे को उठा कर रख दो वहीं रखा रहेगा। उसे उठा कर रख दिया, वो वहीं है। क्योंकि हाथ नहीं सरक नहीं सकते, पाँव नहीं हैं खिसक नहीं सकते। तो उनका नाम रख दिया पीपा महाराज। लेकिन उनके पास वो चीज थी जो है असाढ़ की गर्मी। वो कपड़े उतारना जानते थे। कपड़े उतार के नंगे रहते थे। दिमांग में न अंश था न कुल था, न कुटुम्ब था, कुछ नहीं था। ये भी नहीं था कि मैं आदमी की सन्तान हूं। कुछ नहीं। और हम, चीजों को पकड़ते हैं जब हम मैं को लेकर के शरीर और संसार को जोड़ देते हैं, तभी आप देख रहे होंगे कि मैं किसी को देख सकता हूँ और मेरी आँखें किसी को देखती हैं। पहले कहुँगा कि मेरा मन किसी को पकड़े। तो मैं कुछ पहने हुआ हूं, फंसा हुआ हूं।

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