आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, March 4, 2010

समर्पित भक्त-साधक इस दुनियाँ में कुछ भी अपना नहीं मानता

समर्पित भक्त-साधक इस दुनियाँ में कुछ भी अपना नहीं मानता उसके लिए सब कुछ उस दिव्य शक्ति की सत्ता से ही होता है वह तो मात्र ट्रस्टी बनकर ही रहता है और जो कुछ भी वह कर रहा है उसे गुरु इच्छा मानकर करता है।

राजी हैं हम उसी में, जिसमें तेरी रजा है।

यहाँ यूँ भी वाह-वाह है, यहाँ त्यों भी वाह-वाह है॥''

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