रिक्त लौटा है न कोई, आपके इस द्वार से तो।
आत्म-बल टूटे न मेरा, प्रार्थना है ये गुरु जी।
आत्म-सुख सन्तोष पाने, मैं यहाँ पर आ गई हूँ॥
दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥
सब समय, सब कुछ मिला है, आपके भण्डार से गुरु।
क्यों रुके हम? साधना के, क्षेत्र में बढ़ने से आगे।
सत्य, शिव, सुन्दर सभी तो, मैं यहाँ पर पा गई हूँ॥
दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥
प्रस्तुति : अंजलि शर्मा अलीगढ
No comments:
Post a Comment