गुरुदेव ने यहाँ प्रकट कर दिया कि मनुष्य चाहे कितना भी पढ़ा लिखा हो लेकिन जब तक उसमें अच्छे आचार-विचार और संस्कार नहीं है वह मनुष्य कहलाने के लायक नहीं। इसलिए हमें अपना मन संयम पूर्वक अच्छे कर्मों में लगाना चाहिए, अपनी संगति और आचार-विचार शु( रखते हुए विनम्र रहना चाहिए, कभी भी गालियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि जैसे एक मंत्र हमारे कल्याण के लिए पर्याप्त होता है, वैसे ही एक गाली हमारे आध्यात्मिक मार्ग को अवरु( करने के लिए काफी होती है। अपने पवित्र आचार और विचारों को द्रढ़ता देने के लिए अपने सामने श्र(ा से युक्त होकर एक आदर्श रखना चाहिए, जिससे कि जीवन के प्रत्येक मार्ग में उस आदर्श को सामने रखकर सही और गलत में फर्क करते हुए आगे बढ़ सकें। लेकिन यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि आदर्श कोई फिल्मी अभिनेता या अभिनेत्री नहीं वरन् हमारे देश की महान विभूतियाँ जैसे- राम, कृष्ण, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई और भी ऐसी ही महान हस्तियाँ हैं, जिन्होंने ने देश और समाज केलिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, जिन्हें हम पथ प्रदर्शक के रूप में अपना आदर्श बना सकते हैं। आओ अब हम दृढ़ संकल्प ले कि हम संस्कारी बनेंगे, अपने पूज्यनीय माता-पिता, गुरुजन व सभी बड़ों को सम्मान और बड़प्पन देंगे चाहे उनसे सुनने को गाली ही क्यों न मिले अर्थात् सद्गुणी बनकर ही रहेंगे। रुद्र कृपा में सबको संस्कारित होने के लिए दृढ़ता और हौसला मिले........।
Friday, April 2, 2010
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