देखिये गुरू पूर्णिमा के लिए असाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों चुना, कोई और पूर्णिमा क्यों नहीं चुनी गई। शरद पूर्णमा को भी तो मना सकते थे। फर्स्ट क्लास मौसम होता है। न सर्दी होती है, ना गर्मी होती है और उसमें न कीचड़ होती है। साफ रास्ते होते हैं, हरियाली होती है, बढ़िया मौसम होता है। शरद को नहीं चुना। और किसी मौसम की पूर्णिमा को नहीं चुना इसी को क्यों चुना? इसमें खास बात है। इसको चुना है तो इसके पीछे भी एक मकसद है। इस पूर्णिमा को गर्मी होती है, बादल भी होते हैं, भीषण गर्मी, भीषण बरसात, दोनों साथ-साथ। ये जो गर्मी है, वो ज्ञान का और त्याग का सिंम्बल है, प्रतीक है। ये जो अभी कपड़े उतारने की बात कही थी, वही बात है। गर्मी आते ही आदमी कपड़े उतार देता है, कम से कम कपड़े पहनता है और सोचता है कि नंगे बदन रहूँ, और पानी में उतर जाऊँ। गर्मी का, पानी का बहुत ही अच्छा ताल मेल है। असाढ़ का महीना है, इस समय इतनी गर्मी है कपड़े उतारने के लिए, दिमांग की सारी बातों को खत्म करने के लिए। अगर हम दिमांग में कुछ पकड़ करके लाते हैं, कुछ आग्रह करके जाते हैं, तो कहेंगे कुछ नहीं मिला। तुम कहोगे कि हम गुरू के पास जाते हैं, तो क्यों नहीं मिलेगा? तर्क दोगे कि आग के पास कैसे भी जाऐं, गर्मी लगती ही है। सही है। रोशनी के पास जाओ तो रोशनी मिलती ही है। बिल्कुल सही बात है।
Tuesday, October 5, 2010
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