Monday, September 27, 2010
जिन्दगी तुम्हारी किसके लिए है......
पर्व क्यों बनया गया? पर्व इसलिए है कि जिन्दगी तुम्हारी किसके लिए है। जिन्दगी कैसे चल रही है? वहां दिमांग की जरूरत है। वहाँ तुम्हारी जरूरत है। जिन्दगी किसके लिए होनी चाहिए? वहाँ तुम्हारी अहमियत मालुम पड़ती है कि तुम हो या नहीं। तुम क्या सोचते हो? क्या सोचना है? क्या सोचते हो, से बात नहीं है। क्या सोचना चाहिए, बात ये है। क्या सोचना चाहिए उसके लिए हमें महापुरूषों की शरण में जाना चाहिए। ये परम्परा है ये ज्तंकपजपवद है। जो परम्परा के साथ जुड़ते हैं, उनको जिन्दगी का जो उद्देश्य है, जिन्दगी क्या है? जिन्दगी जीने का जो आनन्द है, जो तरीका है, वो क्या है? वो उन महापुरूषों की शरण में जाने से मिलेगा। वहाँ उन महापुरूषों की शरण में जाने के लिए ये जो तुम्हारे पास किसी दिखावे की जरुरत नहीं है। उनकी शरण में जाने के लिए, उन तक पहुंचने के लिए न कोई ड्रैस काम करेगी, न तुम्हारा अंग, वंश, कुटुम्ब, धर्म, परिवार, खानदान, जाति, रिश्ता, नाता, पढ़ाई-लिखाई, सुन्दराता, कुरूपता, आँख, नाक, कुछ भी नहीं चलेगा। क्या चलेगा?
Labels:
spirituality
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Labels
Bhagawad
(1)
bible
(17)
diwali
(2)
FAQ
(3)
female
(5)
gandhi
(1)
gita
(8)
guru
(7)
holi
(1)
islam
(6)
jainism
(2)
karma
(1)
katha
(1)
kavita
(26)
meditation
(1)
mukti
(1)
news
(1)
prayer
(10)
rudra
(3)
Rudragiri
(1)
science and vedas
(6)
science and वेदस
(1)
spirituality
(147)
sukh
(6)
tantra
(31)
truth
(28)
vairgya
(1)
vastu
(2)
xmas
(1)
yeshu
(1)
गुरु
(4)
धर्मं
(3)
बोध कथा
(5)
स्पिरितुअलिटी
(2)
1 comment:
कैसे पहचान हो कि महा पुरुश कौन है रोज़ टी.वी पर तथाकथित महापुरुश देखते हैं और तय नही कर पाते कि महापुरुश कहाँ मिलेंगे। उन लोगों ने कितने प्रेम और श्रद्धा से उन संतों पर अपना सब कुछ लुटाया जो आज उनकी काली करतूतेज़ं देख कर माथा पीट रहे हैं। आपसे एक आलेख अपेक्षित है कि लोगों को बतायें कि गुरू कैसा हो? धन्यवाद इसे अन्यथा न लें बस मन के एक सन्देह है जिसका निवारण चाहती हूँ। धन्यवाद।
Post a Comment