गुरु द्वार पर अब तो मैं आ गई हूँ।
दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥
कामना मेरी यही है, गुरु कृपा मुझ पर बनी रह।
चिर अमां की रात में भी, ज्योति पूनम सी बनी रह।
आपके चरणों में गुरु जी, स्वयं अर्पित हो गई हूँ॥
दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥
ज्ञान गंगा में नहा कर, जी उठे हैं प्राण मेरे।
त्याग-तप-निष्ठा सभी तो, आपने सिखला दिए हैं।
कुछ नहीं है कामना बस, आपके दर आ गई हूँ॥
दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥
प्रस्तुति : अंजलि शर्मा अलीगढ
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