आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, December 5, 2010

बीमारी से ज्यादा उसकी बजह को जानना जरूरी है।

बीमारी को जानना जरूरी नहीं हैं, बीमारी की बजह को जानना जरूरी है। हम लोग क्या करते हैं, बीमारीयों को जानते रहते हैं और बीमारी की बजह को नहीं जान पाते, ऐसे ही आज कल के डॉक्टर क्या हैं, जो मशीन बता देती है ये रोग है, उसी का इलाज करते हैं, लेकिन उसकी बजह नहीं जानते हैं, तो डॉक्टर के पास जाते रहते हैं, रोगी बनकर दवा खाते रहते हैं। थोड़ी देर के लिए कहता है कि दवा खाई तो बड़िया रहा, ठीक रहा। और दवा बन्द कर दी तो फिर बीमार होगया।

क्यों? रोग को देखा, उसकी बजह को नहीं देखा। रोग जान लिया रोग की बजह का नहीं जाना। हर माँ-बाप यही करता है कि अगर बच्चे के अन्दर खराब आदत हैं तो खराब आदत को लेकर माँ लड़ती है, उसको सुधारती है। पिता भी यही करता है, टीचर भी यही करता है। आज कल के सुधारने वाले लोग हैं, जो अपने आप को कहते हैं,"हम गुरू हैं, हम सुधारक हैं या हम धार्मिक लोग हैं वो सब गन्दी आदत को पकड़े हुए हैं। उसकी बजह को नहीं पहिचानेंगे तब तक ये आदतें नहीं जा सकती। तुम्हारे घर में पानी आ रहा है और तुम उलीचते रहो। ये ऐसा पानी है जो आना बन्द नहीं होगा। उल्टी बुद्धि आना बन्द नहीं होगी, तुम बन्द हो जाओ, वो अच्छी रहेगी। घर में जो पानी आ रहा है, आता रहेगा, कब तक उलीचोगे? तुम उलीचोगे और थक जाओगे और तुम जरा भी हारे, थके, सोऐ, तो तुम्हारे घर में पानी भर जाऐगा, दीवार गिर गई, छत गिर गई।

पानी आऐ नहीं वो बात करो। पानी का आना रूकना चाहिए। पानी आ रहा है, कोई बात नहीं है। पानी कहाँ से आ रहा है? क्यों आ रहा है। उस बात को जानना जरूरी है। पानी कहाँ से आ रहा है? पानी जब आता है, तो कभी कभी मालुम पड़ता है कि यहाँ से आ रहा है और कभी कभी मालुम नहीं पड़ता कहाँ से आ रहा है। अब तो खैर लोग पाईप लाइन से पानी बनाते हैं, लेकिन जब मैड़ बाँध कर पानी लगाने जाते हैं तो ऐसा होता था कि पानी एक खेत दूर जा कर फूट रहा है, तो जो पानी फूटने की वजह है, वो एक खेत पीछे है। जहाँ से पानी फूट रहा है, वहाँ से बन्द कर दिया, तो दूसरी जगह, फिर तीसरी जगह वहाँ से बंद किया, तो चौथी जगह, पता चला कि पूरी मैड़ तोड़ दी। अब मैड़ ही तोड़ दी तो क्या करोगे? पूरे घर को साफ कर दो, तब भी बंद नहीं होगा, मालुम पड़ा कि यहाँ से पानी जा रहा है। उल्टी बुद्धि कहाँ से आ गयी? जो लोग कहते हैं तुझ में बुद्धि नहीं है, सुधर जा। जो कह रहा है, वो खुद ही समझदार नहीं है, खुद ही सुधरा हुआ नहीं है। जो लोग गुरू बनते हैं, सिखाने वाले बनते हैं। मम्मी पापा हैं, जो खुद ही बिगड़ जाते हैं, खुद ही बिगड़े हुए हैं, तुम्हें क्या सुधारेंगे, बजह नहीं जानते। बजह न जानना ही विपरीत बुद्धि है। और बजह न जानना, केवल 'मैं' को बड़िया मानना, मैं जो सोचता हूँ बढ़िया है, मैं जो कहता हूँ बढ़िया है। मेरी बात को तुम समझते नहीं हो, मेरी परिस्थिती को तुम समझते नहीं हो, मैं ऐसा क्यों हो गया हूँ, तुम्हें पता नहीं। हमने अपनी जिन्दगी खराब कर ली अब पता नहीं खोपड़ी खराब करोगे, जिन्दगी खराब करोगे।

1 comment:

Truth Eternal said...

क्यों? रोग को देखा, उसकी बजह को नहीं देखा। रोग जान लिया रोग की बजह का नहीं जाना। हर माँ-बाप यही करता है कि अगर बच्चे के अन्दर खराब आदत हैं तो खराब आदत को लेकर माँ लड़ती है, उसको सुधारती है। पिता भी यही करता है, टीचर भी यही करता है। आज कल के सुधारने वाले लोग हैं, जो अपने आप को कहते हैं,"हम गुरू हैं, हम सुधारक हैं या हम धार्मिक लोग हैं वो सब गन्दी आदत को पकड़े हुए हैं। उसकी बजह को नहीं पहिचानेंगे तब तक ये आदतें नहीं जा सकती। तुम्हारे घर में पानी आ रहा है और तुम उलीचते रहो। ये ऐसा पानी है जो आना बन्द नहीं होगा


kaaran aur niuvaaran ka bhi anavaran karen Sanjay g
Aabhar