आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, March 11, 2010

किसी भी परिस्थिति में कोई विरोध-प्रतिरोध, शिकवा-शिकायत नहीं रह जाता।

जब मनुष्य की इच्छा गुरु भगवान की इच्छा से ही मिल जाती है फिर किसी भी परिस्थिति में कोई विरोध-प्रतिरोध, शिकवा-शिकायत नहीं रह जाता। इसका उदाहरण दिव्य गुरु श्री रामचन्द्र जी महाराज इस प्रकार देते हैं- कि भरत अयोध्या वासियों के साथ वन में श्री रामचन्द्र जी के पास उन्हें अयोध्या वापस लौटने के लिए मनाने हेतु गए थे, परन्तु प्रभु श्री राम ने गम्भीरता से अयोध्या वासियों को ही उत्तर दिया कि यदि भरत उनसे कहें तो वे सहर्ष अयोध्या चलने को तैयार हो जाऐंगे। सभी की आँखें भरत पर जा टिकीं जो कि वहाँ आए ही रामजी को मनाने के लिए थे परन्तु उस समय उनके मन के मौन से यही उत्तर निकला "मैं आदेश नहीं दे सकता केवल आपकी आज्ञा का पालन कर सकता हूँ।'' परन्तु यह अवस्था पाना भी आसान नहीं।

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