आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, April 17, 2010

पाप से घबराए नहीं।

तो ये सब प्रकार की बाते इसमें है। ये घमण्ड नहीं करना चाहिए कि हम तो ध्यान करते हैं, दान करते हैं, भजन करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं। हम तो पवित्र हैं, शुद्ध हैं। पता नहीं तुम्हारे भीतर क्या दबा है, तुम्हें पता है? आदमी कहता है मैं तो नीच हूँ, पापी हूँ। नहीं यह भी गलत है। मन को छोटा नहीं करना है। पता नहीं तुम्हारे भीतर कितने जन्मों के पुण्य दबे पड़े हैं? जैसे अजामिल के दबे पड़े थे। तो जो आदमी कह रहा है कि हम पापी हैं वो भी गलत है और जो कह रहा है कि हम धर्मात्मा हैं वह भी गलत है। पता नहीं कि भीतर क्या-क्या दबा पड़ा है। इसलिए पुण्य का घमण्ड नहीं करें और पाप से घबराए नहीं।

आएगा जब तू संतों के द्वार,

महक उठेगा तेरा सब संसार।

जीवन सँवर जाएगा, सुन अभिमानी॥

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