यन्त्र का शाब्दिक अर्थ है 'मशीन' अथवा कोई 'चिन्ह' जो कि मन की एकाग्रता में सहायक हो। परम्परागत रूप से आध्यात्म में इनका प्रयोग मन को संतुलित तथा एकाग्र करने हेतु होता है। यन्त्रों को धारण किया जा सकता है, बनाया जा सकता है अथवा इन पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है। कहते हैं इनका जादुई ज्योतिषीय तथा आध्यात्मिक प्रभाव पड़ता है। यन्त्र शब्द संस्कृत मूल 'यम्' से बना है जिसका अर्थ है 'नियन्त्रित करना।' यन्त्र वह जो काबू करे। यह हमारे भीतर तथा बाहर की ऊर्जा व शक्तियों पर हमें नियन्त्रण दिलाने में सहायक होता है। यह पकड़ने वाले यन्त्र के समान किसी धारण के सार को पकड़ने या धारण करने अथवा मन को किसी, विचार विशेष में एकाग्र करने (उसे पकड़ने) में सहायक हो सकता है। एक आलेखन के रूप में यह एक चिन्ह है, जो कि तावीज+ो पर खोदा जाता है। इनमें जादुई शक्ति होती है ऐसी मान्यता है। यन्त्र तैयार करते समय कुछ ज्यामितीय आकृतियां तथा चिन्हों का प्रयोग होता है। कमल का फूल चक्रों का प्रतीक है। इसका प्रत्येक दल उस चक्र विशेष से सम्बन्धित मनोवृत्ति का द्योतक होता है। एक बिन्दु सृष्टि के आरम्भ बिन्दु को दर्शाता है। षट्कोण जो कि दो विपरीत त्रिकोणों से बनता है, शिव तथा शक्ति के सन्तुलन को अर्थात् अन्तर्मुखता-बहिर्मुखता कर्म तथा विचारशीलता में सन्तुलन का प्रतिनिधित्व करता है। स्वास्तिक (जैसा कि सभी जानते हैं) सौभाग्य, कल्याण, समृ(ि तथा आध्यात्मिक उन्नति का सूचक है। इनके अतिरिक्त यन्त्रों को बनाने में बीज मन्त्रों का प्रयोग भी अति महत्वपूर्ण है। ये बीजमन्त्र देवनागरी लिपि के अक्षर हं,ै जो कि अलग-अलग चक्रों तथा उनसे सम्बन्धित मूलवृत्तियों पर प्रभाव डालते हैं।
Monday, March 2, 2009
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